अंगारकी चतुर्थी का महत्व ओर पूजन विधि---


भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता और प्रथम पूजय देव के रूप में जाना जाता है। किसी भी कार्य को करने से पूर्व सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन किया जाता है।'अंगारक चतुर्थी' की माहात्म्य कथा गणेश पुराण के उपासना खंड के 60वें अध्याय में वर्णित है। एक माह में 2 बार गणेश चतुर्थी आती है। ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा के बाद पड़नेवाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। जब गणेश चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है तो वह अंगारकी चतुर्थी कहलाती है। घर-परिवार की सुख-शांति, समृद्धि, प्रगति, चिंता व रोग निवारण के लिए मंगलवार के दिन आने वाली चतुर्थी का व्रत किया जाता है।
इस बार अंगारकी (संकष्टी) चतुर्थी वैशाख कृष्ण तृतीया, 9 अप्रैल 2019 ( मंगलवार) को है। अंगारकी चतुर्थी को ही संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन विघ्न विनाशक भगवान गणेश की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने से पूरे साल भर के चतुर्थी व्रत का फल प्राप्त होता है।

मंगलदेव की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें वरदान दिया था कि जब मंगलवार के दिन चतुर्थी पड़ेगी उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाएगा। मान्यता है कि अंगारकी चतुर्थी के व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी कार्यों में आ रहे विघ्न और बाधाओं का नाश होता है।
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अंगारकी चतुर्थी पूजा-विधि --
अंगारकी चतुर्थी पर व्रत रखें। इस दिन सूर्योदय से पहले जगकर स्नान आदि से निवृत हो जाए। भगवान गणेश की करें। पूजा के लिए धूप-दीप, पुष्प, दुर्वा और यथा संभव मेवा अर्पित करें और मोदक का भोग लगाएं।प्रातः काल स्नान आदि कर स्वछ होकर लाल वस्त्र धारण करें. गणपति की मूर्ति स्थापित करें. पंचामृत से, कच्चे दूध से एवं गंगाजल से उन्हें स्नान कर कर , उन्हें लाल वस्त्र, मोदक, दूर्वा, जामुन, गुल्हड के फूल , तिल के लड्डू अर्पित करें. धूप दीप जला कर, रोलि, अक्षत, चंदन, अष्टगंध आदि से षोडशोपचार द्वारा पूजन करना चाहिए. इसके पश्चात गणपति का ध्यान कर अथर्व स्त्रोत का पाठ करें , दिन भर उनका स्मरण कर

“ॐ ग़ं गणपतए नमः” का जप करना चाहिए.
गणपति विघ्नहरता माने जाते हैं आपके समस्त कष्टों को दूर कर सकते हैं. जीवन में जो भी समस्याएं हों , गणपति की शरण में जाने से वह दूर हो जाती हैं. गणपति को समस्त देवताओं में प्रथम पूजनीय माना जाता है. कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणपति की आराधना पहले की जाती है फिर वह कार्य शुरू किया जाता है।

इस मंत्र द्वारा गणेशजी का ध्यान करें--

"'खर्वं स्थूलतनुं गजेंन्द्रवदनं लंबोदरं सुंदरं
प्रस्यन्दन्मधुगंधलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्
दंताघातविदारितारिरूधिरै: सिंदूर शोभाकरं 
वंदे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम।'"

अंगारकि संकष्टी को चंद्रमा की किरण गणपति पर पड़ें तो उस समय अथर्वशीर्ष का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। चंद्र दर्शन के पश्चात ही इस व्रत को समाप्त किया जाता है.माना जाता है की भगवान शिव ने भी इस व्रत को किया था एवं इस दिन गणपति के साथ, माता पार्वती, भगवान शिव जी एवं चंद्रमाका पूजन करना चाहिए.दिन भर व्रत रख कर संध्या में पूर्व मुखी हो कर या फिर ईशान कोण, या उत्तर दिशा की तरफ मुख कर गणपति आराधना के पश्चात चंद्र दर्शन करने के बाद व्रत तोड़े । इस दिन व्रत करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है एवं समस्त विघ्नों का नाश होता है इसीलिए गणपति को विघ्नहर्ता भी बोला गया है।
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इस मंत्र का करें जाप--

"गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।"
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भगवान गणपति 12 पावन नाम (पढ़ें अर्थसहित)

गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।
विनायकश्चारुकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।।
विश्वं तस्य भवे नित्यं न च विघ्नमं भवेद् क्वचिद्।
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इस मंत्र के जाप से होगा लाभ-

"सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक:
लंबोदरश्‍च विकटो विघ्ननाशो विनायक: 
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:
द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छृणयादपि 
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमें तथा संग्रामेसंकटेश्चैव विघ्नस्तस्य न जायते"
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गणेश आराधना के लिए 16 उपचार माने गए हैं-

1. आवाहन, 2. आसन, 3. पाद्य (भगवान का स्नान‍ किया हुआ जल), 4. अर्घ्य, 5. आचमनीय, 6. स्नान, 7. वस्त्र, 8. यज्ञोपवीत, 9. गंध, 10. पुष्प (दूर्वा), 11. धूप, 12. दीप, 13. नेवैद्य, 14. तांबूल (पान), 15. प्रदक्षिणा, 16. पुष्‍पांजलि।
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ये हैं व्रत के नियम और पूजा विधि--

– अंगारकी चतुर्थी पर दिनभर फलाहार करें और व्रत के नियमों का पालन करें।चतुर्थी का उपवास कठोर होता है जिसमे केवल फलों, जड़ों (जमीन के अन्दर पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। गणपति के भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और चंद्र दर्शन के बाद उपवास तोड़ते हैं। व्रत रखने वाले जातक फलों का सेवन कर सकते हैं।साबूदाना की खिचड़ी, मूंगफली और आलू भी खा सकते हैं।

– इस दिन शाम की पूजा चांद निकलने से पहले करनी चाहिए। पूजा के दौरान तिल और गुड़ के लड्डू, फूल, जल, चंदन, दीप-धूप, केला और मौसमी फल, नारियल आदि प्रसाद के तौर पर रखें।
– पूजा करते वक्त दुर्गा माता की मूर्ति भी रखें। गणपति पूजा के दौरान माता की मूर्ति रखना शुभ माना जाता है। गणेशजी की आरती के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करनी चाहिए।
– गणपति को चंदन का टीका लगाने के बाद धूप-दीप से वंदन करना चाहिए। उसके बाद लड्डुओं का भोग लगाकर प्रसाद बांटना चाहिए।
---इसके बाद एक थाली या केले का पत्ता लें, इस पर आपको एक रोली से त्रिकोण बनाना है।
-- त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें. इसी के साथ बीच में मसूर की दाल व सात लाल साबुत मिर्च को रखें।
--पूजन उपरांत चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें. पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
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अलग-अलग कष्टों के निवारण के लिए चढ़ावा---

👉🏻👉🏻भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु गणेश जी पर बेल फल चढ़ाएं। 
👉🏻👉🏻पारिवारिक विपदा से मुक्ति के लिए गणेश जी पर चढ़े गोलोचन से घर के मेन गेट पर तिलक करें। 
👉🏻👉🏻रुके मांगलिक कार्य संपन्न करने के लिए शक्कर मिली दही में छाया देखकर गणपति पर चढ़ाएं।
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अंगारकी चतुर्थी की कथा --

पृथ्वीदेवी ने महामुनि भरद्वाज के जपापुष्प तुल्य अरुण पुत्र का पालन किया। 7 वर्ष के बाद उन्होंने उसे महर्षि के पास पहुंचा दिया। महर्षि ने अत्यंत प्रसन्न होकर अपने पुत्र का आलिंगन किया और उसका सविधि उपनयन कराकर उसे वेद-शास्त्रादि का अध्ययन कराया। फिर उन्होंने अपने प्रिय पुत्र को गणपति मंत्र देकर उसे गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए आराधना करने की आज्ञा दी।

मुनि पुत्र ने अपने पिता के चरणों में प्रणाम किया और फिर पुण्यसलिला गंगाजी के तट पर जाकर वह परम प्रभु गणेशजी का ध्यान करते हुए भक्तिपूर्वक उनके मंत्र का जप करने लगा। वह बालक निराहार रहकर एक सहस्र वर्ष तक गणेशजी के ध्यान के साथ उनका मंत्र जपता रहा।

माघ कृष्ण चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर दिव्य वस्त्रधारी अष्टभुज चन्द्रभाल प्रसन्न होकर प्रकट हुए। उन्होंने अनेक शस्त्र धारण कर रखे थे। वे विविध अलंकारों से विभूषित अनेक सूर्यों से भी अधिक दीप्तिमान थे। भगवान गणेश के मंगलमय अद्भुत स्वरूप का दर्शन कर तपस्वी मुनिपुत्र ने प्रेम गद्गद कंठ से उनका स्तवन किया।

वरद प्रभु बोले- 'मुनिकुमार! मैं तुम्हारे धैर्यपूर्ण कठोर तप एवं स्तवन से पूर्ण प्रसन्न हूं। तुम इच्छित वर मांगो। मैं उसे अवश्य पूर्ण करूंगा।'

प्रसन्न पृथ्वीपुत्र ने अत्यंत विनयपूर्वक निवेदन किया- 'प्रभो! आज आपके दुर्लभ दर्शन कर मैं कृतार्थ हो गया। मेरी माता पर्वतमालिनी पृथ्वी, मेरे पिता, मेरा तप, मेरे नेत्र, मेरी वाणी, मेरा जीवन और जन्म सभी सफल हुए। दयामय! मैं स्वर्ग में निवास कर देवताओं के साथ अमृतपान करना चाहता हूं। मेरा नाम तीनों लोकों में कल्याण करने वाला 'मंगल' प्रख्यात हो।' 

पृथ्वीनंदन ने आगे कहा- 'करुणामूर्ति प्रभो! मुझे आपका भुवनपावन दर्शन आज माघ कृष्ण चतुर्थी को हुआ है अतएव यह चतुर्थी नित्य पुण्य देने वाली एवं संकटहारिणी हो। सुरेश्वर! इस दिन जो भी व्रत करे, आपकी कृपा से उसकी समस्त कामनाएं पूर्ण हो जाया करें।'

सद्य:सिद्धिप्रदाता देव-देव गजमुख ने वर प्रदान कर दिया- 'मेदिनीनंदन! तुम देवताओं के साथ सुधापान करोगे। तुम्हारा 'मंगल' नाम सर्वत्र विख्यात होगा। तुम धरणी के पुत्र हो और तुम्हारा रंग लाल है, अत: तुम्हारा एक नाम 'अंगारक' भी प्रसिद्ध होगा और यह तिथि 'अंगारक चतुर्थी' के नाम से प्रख्यात होगी। पृथ्वी पर जो मनुष्य इस दिन मेरा व्रत करेंगे, उन्हें एक वर्षपर्यंत चतुर्थी व्रत करने का फल प्राप्त होगा। निश्चय ही उनके किसी कार्य में कभी विघ्न उपस्थित नहीं होगा।'

परम प्रभु गणेश ने मंगल को वर देते हुए आगे कहा- 'तुमने सर्वोत्तम व्रत किया है, इस कारण तुम अवंती नगर में परंतप नामक नरपाल होकर सुख प्राप्त करोगे। इस व्रत की अद्भुत महिमा है। इसके कीर्तन मात्र से मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति होगी।' ऐसा कहकर गजमुख अंतर्ध्यान हो गए।

मंगल ने एक भव्य मंदिर बनवाकर उसमें दशभुज गणेश की प्रतिमा स्थापित कराई। उसका नामकरण किया 'मंगलमूर्ति'। वह श्री गणेश विग्रह समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला, अनुष्ठान, पूजन और दर्शन करने से सबके लिए मोक्षप्रद होगा।

पृथ्वी पुत्र ने मंगलवारी चतुर्थी के दिन व्रत करके श्री गणेशजी की आराधना की। उसका एक अत्यंत आश्चर्यजनक फल यह हुआ कि वे सशरीर स्वर्ग चले गए। उन्होंने सुर समुदाय के साथ अमृतपान किया और वह परमपावनी तिथि 'अंगारक चतुर्थी' के नाम से प्रख्यात हुई। यह पुत्र-पौत्रादि एवं समृद्धि प्रदान कर समस्त कामनाओं को पूर्ण करती है।


परम कारुणिक गणेशजी को अंतरहृदय की विशुद्ध प्रीति अभीष्ट है। श्रद्धा और भक्तिपूर्वक त्रयतापनिवारक दयानिधान मोदकप्रिय सर्वेश्वर गजमुख कपित्थ, जम्बू और वन्य फलों से ही नहीं, दूर्वा के 2 दलों से भी प्रसन्न हो जाते हैं और मुदित होकर समस्त कामनाओं की पूर्ति तो करते ही हैं, जन्म-जरा-मृत्यु का सुदृढ़ पाश नष्ट कर अपना दुर्लभतम परमानंदपूरित दिव्य धाम भी प्रदान कर देते हैं।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री एवम उनके साथी वेदाचार्यों द्वारा पाठकों/दर्शकों हेतु शुद्ध, सिद्ध एवम संस्कारित 5 मुखी रूद्राक्ष का (111 का-संख्या) निःशुल्क वितरण किया जाएगा। निःशुल्क उपलब्ध करवाया जाएगा। इन्हें निःशुल्क प्राप्त करने हेतु पंडित दयानन्द शास्त्री के निम्न पते पर पर्याप्त डाक टिकट लगा और स्वयं का पता लिखा लिफाफा भिजवाने की व्यवस्था करें। जो लोग कोरियर या स्पीड पोस्ट से मंगवाना चाहते वे पेकिंग चार्ज एवम कोरियर/स्पीड पोस्ट से इन शुद्ध, सिद्ध एवम संस्कारित रुद्राक्ष प्राप्ति हेतु 150/-Paytm (नम्बर 9039390067 – वाट्सएप पर) करके सूचित करें। - vastushastri08@gmail.com, FOR ASTROLOGY www.expertpanditji.com , FOR JOB www.uniqueinstitutes.org

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