ज्योतिष में राहु केतु ग्रह और इनके प्रभाव :

राहु और केतु बाकी ग्रहो के मुकाबले हमारे जीवन को बहुत ज़्यादा प्रभावित करते हैं , इसका कारण यह है कि हम इन ग्रहों से संबंधित चीज़ों से ज़्यादा ही जुड़े हुए हैं , जैसे कि मोबाइल । इस लिए ज़्यादातर लोग इन्ही ग्रहो की नकारात्मकता से प्रभावित भी रहते हैं । हालाकि बहुत बार इन ग्रहों पर पोस्ट की गई है, लेकिन इस पोस्ट में अलग तरीके से राहु और केतु को समझने का प्रयास करते हैं , क्योंकि जब तक ग्रहो को नहीं समझते, तब तक इनके उपाय भी नहीं हो सकते :
* राहु और केतु को क्रिकेट गेम से जोड़ सकते हैं, जैसे कि मैदान पर 2 बैट्समैन खिलाड़ी रहते हैं , 1 striker 2 non striker , ये दोनों batting करेगे single double run लेंगे , तभी score board आगे चलेगा , इसी तरह जीवन मे कुछ भी घटित होगा, उस मे राहु और केतु दोनो का रोल रहेगा । जिन में से राहु striker है और केतु non striker है
* राहु striker क्यों, क्योंकि ज्योतिष में राहु को भोग कारक कहा गया है , इसी लिए वही striker है जो balls को face कर रहा है , boundries लगा रहा है । केतु non striker क्यों, क्योंकि ज्योतिष में केतु को deattachment का ग्रह कहा गया है । जैसे कि non striker को कोई मतलब नहीं कि balling कोन कर रहा है, क्योंकि उसकी turn तभी आएगी जब सामने वाला single रन लेगा । इसी लिए केतु deattached है, लेकिन मैदान में है, field को देख रहा है , crowd को देख रहा है , opposite team क्या plan कर रही है , सब कुछ देख और समझ रहा होता है ।
* इसी लिए राहु की बजाये केतु ज़्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब कोई batsman boundry नहीं लगा पाता, तब वो यही करता है 1 run लेकर non strike end पर चला जाता है , यानी केतु के स्थान पर चला जाता है , वहाँ से rest करके relax होकर फिर से उसकी turn आ जाती है ।
* और हम लोग अपनी जिंदगी में भी यही गलती कर देते हैं कि बड़े बड़े boundry लगाने के लालच में छोटे छोटे score 1 , 2 यानी छोटी छोटी ख़ुशीयां खो देते हैं ।
* केतु कुण्डली का comfort zone भी है , क्योंकि केतु flag है कि आप उन भाव से संबंधित चीज़ों को भोग चुके हो । जैसे कि केतु 5th भाव मे हो जो कि desicion making का कारक है, लेकिन ऐसे लोग कभी भी खुद के लिए फैसले कर ही नहीं पाते, हमेशा दूसरों के सुख और खुशियों को देखते हुए जीते हैं , इस तरह से उनके खुद के फैसले व्यर्थ चले जाते हैं । इसी तरह से 7th भाव मे केतु हो, तो जीवनसाथी या तो नौकरी करने वाला होता है, या फिर एक ही घर मे रह कर भी जीवनसाथी दूर रहता है ,या फिर दोनो में से किसी की नौकरी दूसरे शहर लगी होती है , या फिर जीवनसाथी झगड़ा कर अलग हो जाता है , तो बजाये इन सब के जीवनसाथी की जो इच्छा है उसको वो करने दो , उसी में सहमति जतायो यही 7th केतु indicate करता है , तो झगड़े होंगे ही नहीं । इसी तरह 11th भाव का केतु हो तो बड़े भाई बहनों की हर बात पर सहमति जतायो , जैसे non striker end पर खड़ा batsmen सामने वाले पर अपनी मर्ज़ी नहीं थोपता , बल्कि उसको उसका खुद का natural तरीके से खेलने को कहता है , जीत या हार बाद की बात होती है ।
* इस तरह से केतु जिस भी भाव मे है, उस भाव से संबंधित रिश्तो और अन्य चीज़ों को उसी तरह सहमति दो जिस तरह से वो हो रही हैं , उनको बदलने की कोशिश ना करें , नहीं तो बाकी कितने भी उपाय करो सब व्यर्थ ही जाएंगे ।
* और यही सब से बड़ा उपाय भी है, कि राहु का उपाये केतु से होता है, और केतु का उपाये राहु से । अगर आप ने केतु के भाव वाले रिश्तो और चीज़ों को उनकी मर्जी करने की छूट दे दी, तो राहु अपने आप शांत हो जाएगा .......


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