श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी दिव्यानंद तीर्थ जी

अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी दिव्यानंद तीर्थ जी महाराज ब्रह्मलीन हो गए है। लगभग 2 बजे तक बृजघाट, गढ़ मुक्तेश्वर (दिल्ली- हरिद्वार मार्ग पर) गंगा किनारे पहुँचाया जाएगा जल समाधि के लिए।
ब्रह्मलीन आदिगुरु शंकराचार्य के धर्म  ध्वज वाहक भानपुरा पीठ (मध्य प्रदेश ) के पीठाधीश्वर शंकराचार्य श्री दिव्यानंद तीर्थ महाराज सनातन धर्म के सर्वाधिक शिक्षित संतों में से एक थे।
“देवी भागवत कथा” में सम्पूर्ण राष्ट्र में इनका कोई सानी नहीं। एक सम्पूर्ण आभामय व्यक्तित्व वाले शंकराचार्य श्री दिव्यानंद तीर्थ अपनी कथा में प्राचीन जातक कथाओं में आधुनिक सन्दर्भ बहुत ही रोचक तरीके से जोड़ते थे।
सामाजिक उत्थान क्षेत्र में भी आपकी उपलब्धि उल्लेखनीय है. शंकराचार्य की वेशभूषा आपश्री बहुत बहुत अच्छी लगती है. आपकी आँखों का तेज देखने लायक है।

भानपुरा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य अनंत श्री विभूषित परम पूज्य स्वामी दिव्यानंदजी तीर्थ महाराज ने विगत 17 अप्रैल से चल रहे 4 दिवसीय श्रीमद रामचरित्र मानस प्रवचन के अंतिम दिन अपने आशीर्वचन के माध्यम से बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच कहे।

स्वामी श्री ने कहा कि भगवान शंकराचार्य का दर्शन जीव ब्रह्म की एकात्मता है ,जीव ब्रह्म से अलग नहीं है आपने कहा कि सन्यासी एवं गृहस्ती दोनों ही समाज के लिए जरूरी है। स्वामी श्री ने कहा कि विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है परंतु वर्तमान में हमारी क्षमताओं को कम कर दिया है। भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी दिव्यानंद जी तीर्थ महाराज ने यह भी कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना अवलोकन करना चाहिए ताकि अपनी क्षमताओं का आकलन हो सके एवं अपने सत्कर्मों से सुख शांति वैभव आदि की प्राप्ति होती रहे।
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सादर विनम्रतापूर्वक श्रद्धाजंलि
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