प्रिय पाठकों/मित्रों, भारतीय वैदिक ज्योतिष विद्या में नौ ग्रहों, 12 राशियों और 27 नक्षत्रों का समावेश है जिसमें सभी की अपनी महत्ता है। सभी ग्रहों का अपने आप में महत्व है लेकिन कुछ ग्रह नकारात्मक होते है जैसे राहु, केतु, मंगल और शनि। जब भी ये ग्रह कुंडली में गलत भाव या स्थिति में बैठते हैं तो व्यक्ति को भारी नुकसान भुगतना पड़ता है।
राहु ग्रह अपनी दशा में ऐसी स्थितियां पैदा करता है जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता और जिसके आकस्मिक परिणाम होते है जो शुभ या अशुभ, हो सकते है।
ज्योतिषशाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जब सूर्य एंव चन्द्रमा के अंशो में दूरी होती है तब दूसरे ग्रहो के आपस में मिलने से योगों का निर्माण होता है। ज्योतिष में योगों का बहुत महत्त्व है। सभी ग्रहों का अपना अलग स्वभाव है इनमें कुछ ग्रह नकारात्मक या पापी होते है जैसे राहु, केतु, मंगल और शनि। यदि यह ग्रह कुंडली में मारक या अशुभ भाव में बैठे हों तो व्यक्ति को भारी क्षति का सामना करना पड़ता है। किसी भी जातक की जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है और शुभ एवं अशुभ योग बताये जाते है।
ज्योतिष शास्त्र में पंचांग से तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के आधार पर मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है। मुहूर्त किसी कार्य के लिए शुभ व अशुभ समय की अवधि को कहा जाता है।
मुहूर्त शास्त्र के अनुसार तिथि, वार, नक्षत्र, योग आदि के संयोग से शुभ या अशुभ योगों का निर्माण होता है। जिन मुहूर्तों में शुभ कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ मुहूर्त कहते हैं। इसके विपरीत अशुभ योगों में किए गए कार्य असफल होते हैं और उनका फल भी अशुभ होता है। शुभ व अशुभ योगों का निर्माण तिथियों, वारों व नक्षत्रों के संयोग से होता है और इसके लिए ग्रह दशा भी जिम्मेदार होती है। जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है और शुभ योग और अशुभ योग बताये जाते है। कुंडली में कुछ ग्रह योग अशुभ माने जाते हैं जो व्यक्ति के जीवन का सुख-चैन छीन लेते हैं, तो कुछ ऐसे शुभ ग्रह हैं जो व्यक्ति का जीवन संवार देते हैं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं। यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी, सुखी और पराक्रमी बनता है, लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है। कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या शुभ ग्रहों से अधिक प्रबल अशुभ ग्रहों के होने से दुर्योगों का निर्माण होता है।
ये हें ज्योतिष के कुछ चुने हुए शुभ योगों के नाम-
👉🏻👉🏻सरस्वती योग:
जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर एक दुसरे के साथ सम्बन्ध बना रहे हों। युति या दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों। इस योग से जातक को मां सरस्वती की कृपा दृष्टि, कला, ज्ञान, संगीत, लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ख्याति की प्राप्ति होती है।
👉🏻👉🏻महालक्ष्मी योग :
जब बृहस्पति द्वितीय भाव का स्वामी हो कर एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा हो तो महालक्ष्मी योग बनता है। यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इस योग से जातक की दरिद्रता दूर होती है।
👉🏻👉🏻नृप योग :
जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च के होकर कुंडली में विराजमान हो तो नृप योग बनता है। इस योग से जातक को राजा जैसा जीवन एवं राजनीति में उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।
👉🏻👉🏻महालक्ष्मी योग
जातक के भाग्य में धन और ऐश्वर्य का प्रदाता महालक्ष्मी योग होता है। धनकारक योग या महालक्ष्मी योग तब बनता है जब द्वितीय स्थान का स्वामी जिसे धन भाव का स्वामी भी माना जाता है यानि गुरुग्रह बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा हो। यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे जातक की दरिद्रता दूर होती है और समृद्धि उसका स्वागत करती है। लेकिन यह योग भी तभी फलीभूत होते हैं जब जातक योग्य कर्म कर रहा हो।
👉🏻👉🏻शुभ योग
किसी जातक की कुंडली में अगर राहु छठे भाव में स्थित होता है और उस कुंडली के केन्द्र में गुरु विराजमान होता है तो यहां अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह व्यक्ति कभी धन के अभाव में नहीं रहता।
👉🏻👉🏻सरस्वती योग
सरस्वती जैसा महान योग जातक की कुंडली में तब बनता है जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर युति या फिर दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों। यह योग जिस जातक की कुंडली में होता है उस पर मां सरस्वती मेहरबान होती हैं। इसके कारण रचनात्मक क्षेत्रों में विशेषकर कला एवं ज्ञान के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाते हैं जैसे कला, संगीत, लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में आप ख्याति प्राप्त कर सकते है।
👉🏻👉🏻नृप योग
ये योग अपने नाम के अनुसार ही है। जातक की कुंडली में यह योग तभी बनता है जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च स्थिति में रहते हों। जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है उस जातक का जीवन राजा की तरह व्यतीत होता है। अगर व्यक्ति राजनीति में है तो वह इस योग के सहारे शिखर तक पहुंच सकता हैं।
👉🏻👉🏻अमला योग
जब जातक की जन्म पत्रिका में चंद्रमा से दसवें स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित हो तो यह योग बनता है। अमला योग भी व्यक्ति के जीवन में धन और यश प्रदान करता है।
👉🏻👉🏻गजकेसरी योग
असाधारण योग की श्रेणी का योग है गजकेसरी। जब चंद्रमा से केंद्र स्थान में पहले, चौथे, सातवें या दसवें स्थान में बृहस्पति हो तो इस योग को गजकेसरी योग कहते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और बृहस्पति का साथ हो तब भी इस योग का निर्माण होता हैं। पत्रिका के लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक के होने पर यह कारक प्रभाव माना जाता है। जिसकी जन्म कुंडली में यह योग बनता है वो व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली जातक होता है और वो कभी भी अभाव में जीवन व्यतीत नहीं करता।
👉🏻👉🏻पारिजात योग
जब कुंडली में लग्नेश जिस राशि में हो उस राशि का स्वामी यदि कुंडली में उच्च स्थान या फिर अपने ही घर में हो तो ऐसी दशा में पारिजात योग बनता है। इस योग वाले जातक अपने जीवन में कामयाब होते हैं और सफलता के शिखर पर भी पंहुचते हैं लेकिन रफ्तार धीमी रहती है। लगभग आधा जीवन बीत जाने के बाद इस योग के प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।
👉🏻👉🏻छत्र योग
जब जातक की कुंडली में चतुर्थ भाव से दशम भाव तक सभी ग्रह मौजूद हों तब यह योग बनता है। जब जातक अपने जीवन में निरंतर प्रगति करते हुए उन्नति करते हुए उच्च पदस्थ प्राप्त करता है तो छत्र योग के कारण ही सब संभव होता है। छत्र योग भगवान की छत्रछाया यानि प्रभु की कृपा वाला योग माना जाता है।
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राहु ग्रह अपनी दशा में ऐसी स्थितियां पैदा करता है जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता और जिसके आकस्मिक परिणाम होते है जो शुभ या अशुभ, हो सकते है।
ज्योतिषशाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जब सूर्य एंव चन्द्रमा के अंशो में दूरी होती है तब दूसरे ग्रहो के आपस में मिलने से योगों का निर्माण होता है। ज्योतिष में योगों का बहुत महत्त्व है। सभी ग्रहों का अपना अलग स्वभाव है इनमें कुछ ग्रह नकारात्मक या पापी होते है जैसे राहु, केतु, मंगल और शनि। यदि यह ग्रह कुंडली में मारक या अशुभ भाव में बैठे हों तो व्यक्ति को भारी क्षति का सामना करना पड़ता है। किसी भी जातक की जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है और शुभ एवं अशुभ योग बताये जाते है।
ज्योतिष शास्त्र में पंचांग से तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के आधार पर मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है। मुहूर्त किसी कार्य के लिए शुभ व अशुभ समय की अवधि को कहा जाता है।
मुहूर्त शास्त्र के अनुसार तिथि, वार, नक्षत्र, योग आदि के संयोग से शुभ या अशुभ योगों का निर्माण होता है। जिन मुहूर्तों में शुभ कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ मुहूर्त कहते हैं। इसके विपरीत अशुभ योगों में किए गए कार्य असफल होते हैं और उनका फल भी अशुभ होता है। शुभ व अशुभ योगों का निर्माण तिथियों, वारों व नक्षत्रों के संयोग से होता है और इसके लिए ग्रह दशा भी जिम्मेदार होती है। जन्म कुंडली में ग्रहों के योग से ही जातक के मंगल और अमंगल भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है और शुभ योग और अशुभ योग बताये जाते है। कुंडली में कुछ ग्रह योग अशुभ माने जाते हैं जो व्यक्ति के जीवन का सुख-चैन छीन लेते हैं, तो कुछ ऐसे शुभ ग्रह हैं जो व्यक्ति का जीवन संवार देते हैं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं। यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी, सुखी और पराक्रमी बनता है, लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है। कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या शुभ ग्रहों से अधिक प्रबल अशुभ ग्रहों के होने से दुर्योगों का निर्माण होता है।
ये हें ज्योतिष के कुछ चुने हुए शुभ योगों के नाम-
👉🏻👉🏻सरस्वती योग:
जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर एक दुसरे के साथ सम्बन्ध बना रहे हों। युति या दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों। इस योग से जातक को मां सरस्वती की कृपा दृष्टि, कला, ज्ञान, संगीत, लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ख्याति की प्राप्ति होती है।
👉🏻👉🏻महालक्ष्मी योग :
जब बृहस्पति द्वितीय भाव का स्वामी हो कर एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा हो तो महालक्ष्मी योग बनता है। यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इस योग से जातक की दरिद्रता दूर होती है।
👉🏻👉🏻नृप योग :
जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च के होकर कुंडली में विराजमान हो तो नृप योग बनता है। इस योग से जातक को राजा जैसा जीवन एवं राजनीति में उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।
👉🏻👉🏻महालक्ष्मी योग
जातक के भाग्य में धन और ऐश्वर्य का प्रदाता महालक्ष्मी योग होता है। धनकारक योग या महालक्ष्मी योग तब बनता है जब द्वितीय स्थान का स्वामी जिसे धन भाव का स्वामी भी माना जाता है यानि गुरुग्रह बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा हो। यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे जातक की दरिद्रता दूर होती है और समृद्धि उसका स्वागत करती है। लेकिन यह योग भी तभी फलीभूत होते हैं जब जातक योग्य कर्म कर रहा हो।
👉🏻👉🏻शुभ योग
किसी जातक की कुंडली में अगर राहु छठे भाव में स्थित होता है और उस कुंडली के केन्द्र में गुरु विराजमान होता है तो यहां अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह व्यक्ति कभी धन के अभाव में नहीं रहता।
👉🏻👉🏻सरस्वती योग
सरस्वती जैसा महान योग जातक की कुंडली में तब बनता है जब शुक्र, बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर युति या फिर दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों। यह योग जिस जातक की कुंडली में होता है उस पर मां सरस्वती मेहरबान होती हैं। इसके कारण रचनात्मक क्षेत्रों में विशेषकर कला एवं ज्ञान के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाते हैं जैसे कला, संगीत, लेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में आप ख्याति प्राप्त कर सकते है।
👉🏻👉🏻नृप योग
ये योग अपने नाम के अनुसार ही है। जातक की कुंडली में यह योग तभी बनता है जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च स्थिति में रहते हों। जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है उस जातक का जीवन राजा की तरह व्यतीत होता है। अगर व्यक्ति राजनीति में है तो वह इस योग के सहारे शिखर तक पहुंच सकता हैं।
👉🏻👉🏻अमला योग
जब जातक की जन्म पत्रिका में चंद्रमा से दसवें स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित हो तो यह योग बनता है। अमला योग भी व्यक्ति के जीवन में धन और यश प्रदान करता है।
👉🏻👉🏻गजकेसरी योग
असाधारण योग की श्रेणी का योग है गजकेसरी। जब चंद्रमा से केंद्र स्थान में पहले, चौथे, सातवें या दसवें स्थान में बृहस्पति हो तो इस योग को गजकेसरी योग कहते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और बृहस्पति का साथ हो तब भी इस योग का निर्माण होता हैं। पत्रिका के लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक के होने पर यह कारक प्रभाव माना जाता है। जिसकी जन्म कुंडली में यह योग बनता है वो व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली जातक होता है और वो कभी भी अभाव में जीवन व्यतीत नहीं करता।
👉🏻👉🏻पारिजात योग
जब कुंडली में लग्नेश जिस राशि में हो उस राशि का स्वामी यदि कुंडली में उच्च स्थान या फिर अपने ही घर में हो तो ऐसी दशा में पारिजात योग बनता है। इस योग वाले जातक अपने जीवन में कामयाब होते हैं और सफलता के शिखर पर भी पंहुचते हैं लेकिन रफ्तार धीमी रहती है। लगभग आधा जीवन बीत जाने के बाद इस योग के प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।
👉🏻👉🏻छत्र योग
जब जातक की कुंडली में चतुर्थ भाव से दशम भाव तक सभी ग्रह मौजूद हों तब यह योग बनता है। जब जातक अपने जीवन में निरंतर प्रगति करते हुए उन्नति करते हुए उच्च पदस्थ प्राप्त करता है तो छत्र योग के कारण ही सब संभव होता है। छत्र योग भगवान की छत्रछाया यानि प्रभु की कृपा वाला योग माना जाता है।
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