षटतिला एकादशी 31 जनवरी 2019 को...


हिंदू धर्म में माघ महीना बहुत पवित्र माना जाता है। इस माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। पद्म पुराण में षटतिला एकादशी का बहुत महात्मय बताया गया है। इस दिन उपवास करके दान, तर्पण और विधि-विधान से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिलों से जुड़ा हुआ है। सनातन धर्म में माघ माह को नरक से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है। इसी माह में पड़ने वाली षटतिला एकादशी इस बात को बताती है कि धन आदि की तुलना में अन्नदान सबसे बड़ा दान है।
पूजा में तिल का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा का महत्व होता है। काफी श्रद्धा और आदर से जुड़े दिन होते हैं ये...इन दिनों लोग व्रत करते हैं, दान करते हैं, पूजा करते हैं...

षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन 6 प्रकार से तिलों का उपोयग किया जाता है। इनमें तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है।

👉🏻👉🏻जानिए षटतिला एकादशी पर पारणा मुहूर्त --
07:09:40 से 09:19:46 तक 1st, फरवरी को
अवधि :--
2 घंटे 10 मिनट


एकादशी के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कहा जाता है एकादशी व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लिहाज़ा भगवान विष्णु को समर्पित इस दिन को बेहद ही आदर के साथ देखा जाता है। हर महीने में दो बार एकादशी होती है और इस बार जो एकादशी पड़ने जा रही है वो बेहद ही विशेष होने वाली है। मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने दाल्भ्य के नरक से मुक्ति पाने के उपाय के विषय में बताते हुए कहा- मनुष्य को माघ माह में अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ और चुगली आदि का त्याग करना चाहिए। माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत करना चाहिए। इस दिन तिल का विशेष महत्त्व होता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। इस बार षटतिला एकादशी 31 जनवरी को है जिसे हिंदू धर्म में बेहद ही खास माना जाता है। षटतिला एकादशी पर व्रत और व्रत कथा का श्रवण शुभ फलदायक बताया गया है।

👉🏻👉🏻तिल का महत्व--

विभिन्न मान्यताआें के अनुसार  षटतिला एकादशी पर तिल से भरा हुआ बर्तन दान करना बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होंगी, उतने हजार बरसों तक दान करने वाला स्वर्ग में निवास करता है। इसकी कथा के अनुसार भी तिल और अन्नदान बहुत जरूरी है। यदि धन का दान ना कर सकें तो इस व्रत में सुपारी का दान भी किया जा सकता है। जो लोग एकादशी व्रत ना कर सकें उन्हें खान-पान आैर व्यवहार में सात्विक रहना चाहिए। इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा आदि खाना उचित नहीं समझा जाता आैर झूठ, ठगी आैर अन्य तामसी कार्यों का त्याग करने के लिए कहा जाता है। एकादशी के दिन चावल खाना भी वर्जित माना जाता है।

👉🏻👉🏻कब है षटतिला एकादशी ?
कई लोगों में षटतिला एकादशी को लेकर विरोधाभास है लेकिन हम आपको बता रहे हैं कि इस बार षटतिला एकादशी 31 जनवरी, 2019 को है। 1 फरवरी को द्वादशी होगी लिहाज़ा 31 जनवरी को व्रत के बाद 1 फरवरी यानि द्वादशी को ब्राह्मण को दान दें

👉🏻👉🏻षटतिला एकादशी पूजा विधि--
-कहते हैं एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है लिहाज़ा षटतिला एकादशी के दिन नहा धोकर सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा और ध्यान करें।
-अगले दिन द्वादशी पर सुबह सवेरे नहा धोकर भगवान विष्णु को भोग लगाएं और फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं -अगर ब्राह्मणोंं को भोजन कराने मे समर्थ ना हो तो एक ब्राह्मण के घर सूखा सीधा भी दिया जा सकता है।
-सीधा देने के बाद खुद अन्न ग्रहण करें।

👉🏻👉🏻षटतिला एकादशी पर तिल का है विशेष महत्व--

षटतिला एकादशी के नाम के समान ही इस दिन तिल का खास महत्व होता है। अपनी दिनचर्या में इस दिन तिल के इस्तेमाल पर ध्यान दें, तिलों को दान करें इसका बेहद ही पुण्य मिलता है।
-इस दिन तिल के जल से नहाएं।
-पिसे हुए तिल का उबटन लगाएं।
- तिलों का हवन करें
- तिल वाला पानी पीए
-तिलों का दान दें।
-तिलों की मिठाई बनाएं

👉🏻👉🏻षटतिला एकादशी की व्रत कथा--
भगवान विष्णु ने एक दिन नारद मुनि को षटतिला एकादशी व्रत की कथा सुनाई थी जिसके मुताबिक प्राचीन काल में धरती पर एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। जो मेरी बड़ी भक्त थी और पूरी श्रद्धा से मेरी पूजा करती थी। एक बार उस ब्राह्मणी ने एक महीने तक व्रत रखा और मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वो ब्राह्नणी कभी अन्न दान नहीं करती थी एक दिन भगवान विष्णु खुद उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। जब विष्णु देव ने भिक्षा मांगी तो उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर देे दिया। तब भगवना विष्णु ने बताया कि जब ब्राह्मणी देह त्याग कर मेरे लोक में आई तो उसे यहां एक खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर ब्राह्मणी ने पूछा कि मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने के कारण हआ है। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वो आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। तब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत किया और उससे उसकी कुटिया धन धान्य से भर गई।

👉🏻👉🏻सांयकाल एेसे करें पूजा--

षटतिला एकादशी की रात को भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। साथ ही रात्रि को 108 बार "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते हुए उपलों को हवन में डालते हुए स्वाहा करना चाहिए। पूजा के बाद घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान करना चाहिए। यदि संभव हो तो काली गाय का दान भी करना उत्तम होता है। तिल से स्नान, उबटन, होम, तिल का दान, तिल को भोजन व पानी में मिलाकर ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत में तिल के महत्व को इस श्लोक से समझा जा सकता है-

"तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी। तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी॥"

अर्थात इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान करने, उबटन लगाने और होम करने में करना चाहिए, साथ ही तिल मिश्रित जल पीना चाहिए, तिल दान करना चाहिए और तिल का भोजन करना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है।
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