विशेष आकर्षण--साधू समाज
सिंहस्थ पर्व का सर्वाधिक आकर्षण विभिन्न मतावलंबी साधुओं का आगमन, निवास एवं विशिष्ट पर्वों पर बड़े उत्साह, श्रद्धा, प्रदर्शन एवं समूहबद्ध अपनी-अपनी अनियों सहित क्षिप्रा नदी का स्नान है। लाखों की संख्या में दर्शक एवं यात्रीगण इनका दर्शन करते हैं और इनके स्नान करने पर ही स्वयं स्नान करते हैं। इन साधु-संतों व उनके अखाड़ों की भी अपनी-अपनी विशिष्ट परंपराएँ व रीति-रिवाज हैं।
साधु समाज , उनकी परम्परा तथा विभिन्न अखाड़े-----
भारत अपनी धर्म प्रियता के लिए जाना जाता है| हजारों सालों से भारतवासी धर्म में आस्था रखते आये है| मनुष्य ने स्रष्टि के निर्माण एवं विनाश में किसी अद्रश्य शक्ति के आस्तित्व को इश्वर के रूप में स्वीकार कर उसके समक्ष अपना सर झुकाया तथा कल्याण के लिय ईश्वरीय शक्तिक की पूजा अर्चना प्रारंभ की|
जगद गुरु शंकराचार्य का प्रादुर्भाव---
नवी शताब्दी में जगदगुरु आध्यशंकराचार्य जी का प्रादुर्भाव हुआ| इन्होने दो बार पुरे देश का ब्रह्मण किया|
अपने दार्शनिक सिधान्त अदैतवाद का प्रचार किया| इस प्रकार वेदिक सनातन धरम की पुनः प्रतिष्ठाकी | एक विराट भारतीय हिंदू समाज की स्थापना की और जगतगुरु कहलाये|
इन्होने लोकहित में वैदिक धर्म की धारा अहनीश बहती रहे इसे सुनिश्चित करते हुई देश की चारो दिशाओ में चार मठ – ज्योतिर्मठ, श्रंगेरिमाथ, शारदामठ तथा गोवर्धन कायम किये| इसके साथ ही सनातन धर्म के सरंक्षण हेतु एवं उसे गतिमान बनाये रखने की दृष्टि से पारिवारिक बंधन से मुक्त, नि: स्वार्थ,निस्पृह नागा साधुओ/ संनासियोंका पुनर्गठन किया| इनके संगठनो में व्यापक अनुशासन स्थापित किया और देश में दशनाम
संयास प्रणाली चालू की| इसका विधान “ मठाम्नाय” नाम से अंकित किया |
सांसियों के संघो में दीक्षा के बाद संयासी द्वारा जो नाम ग्रहण किये जाते है तथा उनके साथ जो इस शब्द जोड़े जाते है उन्ही के कारण दशनामी के नाम से संयासी प्रसिद्ध हूऐ और उनके ये दस नाम जिन्हें योग पट्ट भी कहा जाता है,प्रसिद्ध हुऐ | संनासियों के नाम के जोड़े जाने वाले ये योग पटट भी कहा जाता है,प्रसिद्ध हुऐ|संनासियों के नाम के आगे जोड़े जाने वाले ये योग पटट शब्द है- गिरी ,पूरी,भारती, वन ,सागर,पर्वत,तीर्थ,आश्रमऔर सरस्वती|
आचार्य शंकर द्वारा रचित मठामनाय ग्रन्थके अनुसार साधु समाज के संघों के पदाधिकारियों की व्यवस्था
निम्नअनुसार से की गई है-----
01) तीर्थ – तत्वमसि आदि महाकाव्य त्रिवेणी – संगम – तीर्थ के सामान है जो सन्यासी इसे भली –भांति समझ लेते है, उन्हें तीर्थ कहते है|
02) आश्रम – जो व्यक्ति सन्यास –आश्रम में पूर्णतया समर्पित है और जिसे कोई आशा अपने बंध में’ नहीं
बांध सकती वह व्यक्ति आश्रम है|
03) वन- जो सुन्दर ऐकाकी ,निर्जन वन में आशा बंधन से अलग होकर वास करते है, उस सन्यासी को “ वन् “ कहते है|
04) गिरी – जो सन्यासी वन में वास करने वाला एवं गीता के अध्ययन में लगा रहने वाला,गंभीर, निश्चल बुद्धि वाले सन्यासी “गिरी” कहलाते है|
05) भारती – जो सन्यासी विद्यावान ,बुद्धिमान , है, जो दुःख कष्ट के बोझ को नहीं जानते है या घबराते नहीं वे संयासी “भारती” कहलाते है|
06) सागर – जो सन्यासी समुद्र की गंभीरता एवं गहराई को जानते हुऐ भी उसमे डूबकी लगाकर ज्ञान प्राप्ति का इच्छुक होते है, वे सन्यासी सागर कहलाते है|
07) पर्वत- जो सन्यासी पहाडो की गुफा में रहकर ज्ञान प्राप्त का इच्छुक होते है, सन्यासी “ पर्वत “ कहलाते है|
08) सरस्वती – जो सन्यासी सदैव स्वर के ज्ञान में निरंतर लिन रहते है और स्वर के स्वरुप की विशिष्टविवेचना करते रहते है तथा संसाररूपी असारता अज्ञानता को दूर करने में लगेरहते है ऐसे सन्यासी सरस्वती कहलाते है|
विभिन्न अखाड़े और उनका विधान-----
दशनामी साधु समाज के ७ प्रमुख अखाडो का जो विवरण आगे दिया गया है वह श्री यदुनाथ सरकार
द्वारा लिखित पुस्तक” नागे संनासियों का इतिहास “ पर आधारित है |
इनमे से प्रत्यक अखाड़े का अपना स्वतंत्र संघठन है इनका अपना निजी लावाजमा होता है , जिसमे डंका , भगवा निशान, भाला,छडी ,वाध,हाथी,घोड़े,पालकी, आदि होते है| इन अखाडों की सम्पति का प्रबंध श्री पंच
द्वारानिर्वाचित आठ थानापति महंतो तथा आठ प्रबंधक सचिवों के जिम्मे रहती है | इनकी संख्या घट बढ़ सकती है|
इनके अखाडों का पृथक पृथक विवरण निम्न अनुसार है-
01----श्री पंच दशनाम जुना अखाडा------- दशनामी साधु समाज के इस अखाड़े की स्थापना कार्तिक शुक्ल दशमी मंगलवार विक्रम संवत १२०२ को उत्तराखंड प्रदेश में कर्ण प्रयाग में हुई | स्थापना के समय इसे भैरव अखाड़े के नाम से नामंकित किया गया था | बहुत पहले स्थापित होने के कारण ही संभवत: इसे जुना अखाड़े के नाम से प्रसिद्ध मिली | इस अखाड़े में शैव नागा दशनामी साधूओ की जमात तो रहती ही है परंतु इसकी विशेषता भी है की इसके निचे अवधूतानियो का संघटन भी रहता है इसका मुख्य केंद्र बड़ा हनुमान घाट ,काशी (वाराणसी, बनारस) है | इस अखाड़े के इष्ट देव श्री गुरु दत्तात्रय भगवान है जो त्रिदेव के एक अवतार माने जाते है |
02------श्री पंचायती अखाडा महनिर्माणी------दशनामी साधुओ के श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना माह अघहन शुक्ल दशमी गुरुवार विक्रम संवत को गढ़कुंडा (झारखण्ड) स्थित श्री बैजनाथ धाम में हुई | इस अखाड़े का मुख्य केंद्र दारा गंज प्रयाग (इलाहाबाद ) में है| इस अखाड़े के] इष्ट देव राजा सागर के पुत्रो को भस्म करने वाले श्री कपिल मुनि है | इसके आचार्य मेरे दीक्षा गुरु ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी श्री विश्वदेवानंद जी महाराज थे,जिनका एक सड़क दुर्घटना में वर्ष 2013 में महाप्रयाण हो गया था | सूर्य प्रकाश एवं भैरव प्रकाश इस अखाड़े की ध्वजाए है| जिन्हें अखाडों के साधु संतो द्वारा देव स्वरुप माना जाता है| इस अखाड़े में बड़े बड़े सिद्ध महापुरुष हुए| जिसमे दशनामी अखाडोंमें इस अखाड़े का प्रथम स्थान है |
सर्व श्री महंत प्रकाश पूरी एवं श्री महंत जोगिन्दरगिरी जी इस अखाड़े’ के सचिव है| वर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर जी का नाम मेरी जानकारी में नहीं हैं...क्षमा करें..
03-----तपो निधि श्री निरंजनी अखाडा पंचायती---- दशनामी साधुओ के तपोनिधि श्री निरंजनी अखाडा पंचायती अखाडा की स्थापना कृष्ण पक्ष षष्टि सोमवार विक्रम सम्वत ९६० को कच्छ (गुजरात) के भांडवी नामक स्थान पर हुई| इसअखाड़े का मुख्य केंद्र मायापूरी हरिद्वार (है ) | इस अखाड़े के इष्ट देव भगवान कार्तिकेय है| इसके आचार्य महामंडलेश्वर श्री पूर्णानन्द गिरी जी महाराज है |
04-------पंचायती अटल अखाडा----- इस अखाड़े’ की स्थापना माह मार्गशीर्ष शुक्ल ४ रविवार’ विक्रम संवत ७०३ को गोंडवाना में हुई | इस अखाडे के इष्टदेव श्री गणेश जी है |
05-----तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाडा------ दशनामी तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़े’ की’ स्थापना’ माह शुक्ल चतुर्थी रविवार विक्रम संवत ९१२ कोबरार प्रदेश में हुई | इस अखाड़े के’ इष्ट’देव’ भगवान श्री सूर्यनारायण’ है’ तथा इसके’ आचार्य महामंडलेश्वर’ स्वामी श्री देवानंद सरस्वती जी महाराज है| अध्यक्ष श्री महंत सागरानन्द जी एवं महंत शंकरानंद जी है | इस अखाड़े का प्रमुख केंद्र कपिल धारा काशी (बनारस ) है | इस अखाड़े के केंद्रीय स्थान (कपिल धारा) के प्रमुख’ सचिव श्री महंत कन्हीयापूरी जी एवं श्री महंतचंचलगिरी है |
06-----श्री पंचदशनाम आह्वान अखाडा---- इस अखाड़े की स्थापना माह ज्येष्ट कृष्णपक्ष नवमी शुक्रवार का विक्रम संवत ६०३ में’ हुई’.... |इस अखाड़े के’ इष्ट’देव’ सिद्धगणपति भगवान है| इसका मुख्य केंन्द्र दशाशवमेघ घाट काशी (बनारस) है’| यह’ अखाडा श्री पंच दशनाम जुना अखाडा के’ आचार्य महामंडलेश्वर स्वामीश्री शिवेंद्र पूरी जी’ महाराज तथा सचिवश्रीमहंतशिव शंकर जी महाराजएवं महंत’ प्रेमपूरीजी’ महाराज है|
07----श्री पंचअग्नि अखाडा – श्री पंच अग्नि अखाड़े की स्थापना’और उसके’ विकास की एक अपनी गतिशील परम्परा है’| उल्लेखनीय यह है’ है की दशनामी साधु समाज के अखाडों की व्यवस्था में सख्त अनुशासन कायम रखने की दृष्टि से इलाहाबाद कुम्भ तथा अर्धकुम्भ एवं हरिद्वार कुम्भ’ में इन अखाडों में श्री महंतो का नया चुनाव होता है|
08 -----श्री उदासीन अखाडा’ – काम , क्रोध पर जीवन में विजय प्राप्त करने वाले माह्नुभाव निश्चय करके अंतरात्मा में ही सुख , आराम, और ज्ञान धारण करते हुऐ पूर्ण , एकी भाव से ब्रह् में लिन रहते है | उदासीन साधू के मन में निजी स्वार्थ की भावना का भी लूप होता’ है|
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सिंहस्थ पर्व का सर्वाधिक आकर्षण विभिन्न मतावलंबी साधुओं का आगमन, निवास एवं विशिष्ट पर्वों पर बड़े उत्साह, श्रद्धा, प्रदर्शन एवं समूहबद्ध अपनी-अपनी अनियों सहित क्षिप्रा नदी का स्नान है। लाखों की संख्या में दर्शक एवं यात्रीगण इनका दर्शन करते हैं और इनके स्नान करने पर ही स्वयं स्नान करते हैं। इन साधु-संतों व उनके अखाड़ों की भी अपनी-अपनी विशिष्ट परंपराएँ व रीति-रिवाज हैं।
साधु समाज , उनकी परम्परा तथा विभिन्न अखाड़े-----
भारत अपनी धर्म प्रियता के लिए जाना जाता है| हजारों सालों से भारतवासी धर्म में आस्था रखते आये है| मनुष्य ने स्रष्टि के निर्माण एवं विनाश में किसी अद्रश्य शक्ति के आस्तित्व को इश्वर के रूप में स्वीकार कर उसके समक्ष अपना सर झुकाया तथा कल्याण के लिय ईश्वरीय शक्तिक की पूजा अर्चना प्रारंभ की|
जगद गुरु शंकराचार्य का प्रादुर्भाव---
नवी शताब्दी में जगदगुरु आध्यशंकराचार्य जी का प्रादुर्भाव हुआ| इन्होने दो बार पुरे देश का ब्रह्मण किया|
अपने दार्शनिक सिधान्त अदैतवाद का प्रचार किया| इस प्रकार वेदिक सनातन धरम की पुनः प्रतिष्ठाकी | एक विराट भारतीय हिंदू समाज की स्थापना की और जगतगुरु कहलाये|
इन्होने लोकहित में वैदिक धर्म की धारा अहनीश बहती रहे इसे सुनिश्चित करते हुई देश की चारो दिशाओ में चार मठ – ज्योतिर्मठ, श्रंगेरिमाथ, शारदामठ तथा गोवर्धन कायम किये| इसके साथ ही सनातन धर्म के सरंक्षण हेतु एवं उसे गतिमान बनाये रखने की दृष्टि से पारिवारिक बंधन से मुक्त, नि: स्वार्थ,निस्पृह नागा साधुओ/ संनासियोंका पुनर्गठन किया| इनके संगठनो में व्यापक अनुशासन स्थापित किया और देश में दशनाम
संयास प्रणाली चालू की| इसका विधान “ मठाम्नाय” नाम से अंकित किया |
सांसियों के संघो में दीक्षा के बाद संयासी द्वारा जो नाम ग्रहण किये जाते है तथा उनके साथ जो इस शब्द जोड़े जाते है उन्ही के कारण दशनामी के नाम से संयासी प्रसिद्ध हूऐ और उनके ये दस नाम जिन्हें योग पट्ट भी कहा जाता है,प्रसिद्ध हुऐ | संनासियों के नाम के जोड़े जाने वाले ये योग पटट भी कहा जाता है,प्रसिद्ध हुऐ|संनासियों के नाम के आगे जोड़े जाने वाले ये योग पटट शब्द है- गिरी ,पूरी,भारती, वन ,सागर,पर्वत,तीर्थ,आश्रमऔर सरस्वती|
आचार्य शंकर द्वारा रचित मठामनाय ग्रन्थके अनुसार साधु समाज के संघों के पदाधिकारियों की व्यवस्था
निम्नअनुसार से की गई है-----
01) तीर्थ – तत्वमसि आदि महाकाव्य त्रिवेणी – संगम – तीर्थ के सामान है जो सन्यासी इसे भली –भांति समझ लेते है, उन्हें तीर्थ कहते है|
02) आश्रम – जो व्यक्ति सन्यास –आश्रम में पूर्णतया समर्पित है और जिसे कोई आशा अपने बंध में’ नहीं
बांध सकती वह व्यक्ति आश्रम है|
03) वन- जो सुन्दर ऐकाकी ,निर्जन वन में आशा बंधन से अलग होकर वास करते है, उस सन्यासी को “ वन् “ कहते है|
04) गिरी – जो सन्यासी वन में वास करने वाला एवं गीता के अध्ययन में लगा रहने वाला,गंभीर, निश्चल बुद्धि वाले सन्यासी “गिरी” कहलाते है|
05) भारती – जो सन्यासी विद्यावान ,बुद्धिमान , है, जो दुःख कष्ट के बोझ को नहीं जानते है या घबराते नहीं वे संयासी “भारती” कहलाते है|
06) सागर – जो सन्यासी समुद्र की गंभीरता एवं गहराई को जानते हुऐ भी उसमे डूबकी लगाकर ज्ञान प्राप्ति का इच्छुक होते है, वे सन्यासी सागर कहलाते है|
07) पर्वत- जो सन्यासी पहाडो की गुफा में रहकर ज्ञान प्राप्त का इच्छुक होते है, सन्यासी “ पर्वत “ कहलाते है|
08) सरस्वती – जो सन्यासी सदैव स्वर के ज्ञान में निरंतर लिन रहते है और स्वर के स्वरुप की विशिष्टविवेचना करते रहते है तथा संसाररूपी असारता अज्ञानता को दूर करने में लगेरहते है ऐसे सन्यासी सरस्वती कहलाते है|
विभिन्न अखाड़े और उनका विधान-----
दशनामी साधु समाज के ७ प्रमुख अखाडो का जो विवरण आगे दिया गया है वह श्री यदुनाथ सरकार
द्वारा लिखित पुस्तक” नागे संनासियों का इतिहास “ पर आधारित है |
इनमे से प्रत्यक अखाड़े का अपना स्वतंत्र संघठन है इनका अपना निजी लावाजमा होता है , जिसमे डंका , भगवा निशान, भाला,छडी ,वाध,हाथी,घोड़े,पालकी, आदि होते है| इन अखाडों की सम्पति का प्रबंध श्री पंच
द्वारानिर्वाचित आठ थानापति महंतो तथा आठ प्रबंधक सचिवों के जिम्मे रहती है | इनकी संख्या घट बढ़ सकती है|
इनके अखाडों का पृथक पृथक विवरण निम्न अनुसार है-
01----श्री पंच दशनाम जुना अखाडा------- दशनामी साधु समाज के इस अखाड़े की स्थापना कार्तिक शुक्ल दशमी मंगलवार विक्रम संवत १२०२ को उत्तराखंड प्रदेश में कर्ण प्रयाग में हुई | स्थापना के समय इसे भैरव अखाड़े के नाम से नामंकित किया गया था | बहुत पहले स्थापित होने के कारण ही संभवत: इसे जुना अखाड़े के नाम से प्रसिद्ध मिली | इस अखाड़े में शैव नागा दशनामी साधूओ की जमात तो रहती ही है परंतु इसकी विशेषता भी है की इसके निचे अवधूतानियो का संघटन भी रहता है इसका मुख्य केंद्र बड़ा हनुमान घाट ,काशी (वाराणसी, बनारस) है | इस अखाड़े के इष्ट देव श्री गुरु दत्तात्रय भगवान है जो त्रिदेव के एक अवतार माने जाते है |
02------श्री पंचायती अखाडा महनिर्माणी------दशनामी साधुओ के श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना माह अघहन शुक्ल दशमी गुरुवार विक्रम संवत को गढ़कुंडा (झारखण्ड) स्थित श्री बैजनाथ धाम में हुई | इस अखाड़े का मुख्य केंद्र दारा गंज प्रयाग (इलाहाबाद ) में है| इस अखाड़े के] इष्ट देव राजा सागर के पुत्रो को भस्म करने वाले श्री कपिल मुनि है | इसके आचार्य मेरे दीक्षा गुरु ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी श्री विश्वदेवानंद जी महाराज थे,जिनका एक सड़क दुर्घटना में वर्ष 2013 में महाप्रयाण हो गया था | सूर्य प्रकाश एवं भैरव प्रकाश इस अखाड़े की ध्वजाए है| जिन्हें अखाडों के साधु संतो द्वारा देव स्वरुप माना जाता है| इस अखाड़े में बड़े बड़े सिद्ध महापुरुष हुए| जिसमे दशनामी अखाडोंमें इस अखाड़े का प्रथम स्थान है |
सर्व श्री महंत प्रकाश पूरी एवं श्री महंत जोगिन्दरगिरी जी इस अखाड़े’ के सचिव है| वर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर जी का नाम मेरी जानकारी में नहीं हैं...क्षमा करें..
03-----तपो निधि श्री निरंजनी अखाडा पंचायती---- दशनामी साधुओ के तपोनिधि श्री निरंजनी अखाडा पंचायती अखाडा की स्थापना कृष्ण पक्ष षष्टि सोमवार विक्रम सम्वत ९६० को कच्छ (गुजरात) के भांडवी नामक स्थान पर हुई| इसअखाड़े का मुख्य केंद्र मायापूरी हरिद्वार (है ) | इस अखाड़े के इष्ट देव भगवान कार्तिकेय है| इसके आचार्य महामंडलेश्वर श्री पूर्णानन्द गिरी जी महाराज है |
04-------पंचायती अटल अखाडा----- इस अखाड़े’ की स्थापना माह मार्गशीर्ष शुक्ल ४ रविवार’ विक्रम संवत ७०३ को गोंडवाना में हुई | इस अखाडे के इष्टदेव श्री गणेश जी है |
05-----तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाडा------ दशनामी तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़े’ की’ स्थापना’ माह शुक्ल चतुर्थी रविवार विक्रम संवत ९१२ कोबरार प्रदेश में हुई | इस अखाड़े के’ इष्ट’देव’ भगवान श्री सूर्यनारायण’ है’ तथा इसके’ आचार्य महामंडलेश्वर’ स्वामी श्री देवानंद सरस्वती जी महाराज है| अध्यक्ष श्री महंत सागरानन्द जी एवं महंत शंकरानंद जी है | इस अखाड़े का प्रमुख केंद्र कपिल धारा काशी (बनारस ) है | इस अखाड़े के केंद्रीय स्थान (कपिल धारा) के प्रमुख’ सचिव श्री महंत कन्हीयापूरी जी एवं श्री महंतचंचलगिरी है |
06-----श्री पंचदशनाम आह्वान अखाडा---- इस अखाड़े की स्थापना माह ज्येष्ट कृष्णपक्ष नवमी शुक्रवार का विक्रम संवत ६०३ में’ हुई’.... |इस अखाड़े के’ इष्ट’देव’ सिद्धगणपति भगवान है| इसका मुख्य केंन्द्र दशाशवमेघ घाट काशी (बनारस) है’| यह’ अखाडा श्री पंच दशनाम जुना अखाडा के’ आचार्य महामंडलेश्वर स्वामीश्री शिवेंद्र पूरी जी’ महाराज तथा सचिवश्रीमहंतशिव शंकर जी महाराजएवं महंत’ प्रेमपूरीजी’ महाराज है|
07----श्री पंचअग्नि अखाडा – श्री पंच अग्नि अखाड़े की स्थापना’और उसके’ विकास की एक अपनी गतिशील परम्परा है’| उल्लेखनीय यह है’ है की दशनामी साधु समाज के अखाडों की व्यवस्था में सख्त अनुशासन कायम रखने की दृष्टि से इलाहाबाद कुम्भ तथा अर्धकुम्भ एवं हरिद्वार कुम्भ’ में इन अखाडों में श्री महंतो का नया चुनाव होता है|
08 -----श्री उदासीन अखाडा’ – काम , क्रोध पर जीवन में विजय प्राप्त करने वाले माह्नुभाव निश्चय करके अंतरात्मा में ही सुख , आराम, और ज्ञान धारण करते हुऐ पूर्ण , एकी भाव से ब्रह् में लिन रहते है | उदासीन साधू के मन में निजी स्वार्थ की भावना का भी लूप होता’ है|
FOR ASTROLOGY www.shubhkundli.com, FOR JOB www.uniqueinstitutes.org