प्रिय मित्रों/पाठकों, भारतीय ज्योतिष में सूर्यज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, लकड़ी मिर्च घास हिरन शेर ऊन स्वर्ण आभूषण तांबा आदि का भी कारक है। मन्दिर सुन्दर महल जंगल किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है। शरीर में पेट आंख ह्रदय चेहरा का प्रतिधिनित्व करता है। और इस ग्रह से आंख सिर रक्तचाप गंजापन एवं बुखार संबन्धी बीमारी होती हैं। सूर्य की जाति क्षत्रिय है। शरीर की बनाव सूर्य के अनुसार मानी जाती है। हड्डियों का ढांचा सूर्य के क्षेत्र में आता है। सूर्य का अयन ६ माह का होता है। ६ माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है, और ६ माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है। इसका रंग केशरिया माना जाता है। धातु तांबा और रत्न माणिक उपरत्न लाडली है। यह पुरुष ग्रह है। इससे आयु की गणना ५० साल मानी जाती है। सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है। सूर्य सप्तम द्रिष्टि से देखता है। सूर्य की दिशा पूर्व है। सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है। सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं। शत्रु शनिऔर शुक्र हैं। समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा ६ साल की होती है। सूर्य गेंहू घी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है। पित्त रोग का कारण सूर्य ही है। और वनस्पति जगत में लम्बे पेड का कारक सूर्य है। मेष के १० अंश पर उच्च और तुला के १० अंश पर नीच माना जाता है। सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर ० अंश से लेकर १० अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है। सूर्य के देवता भगवान शिव हैं। सूर्य का मौसम गर्मी की ऋतु है। सूर्य के नक्षत्र कृतिका का फ़ारसी नाम सुरैया है। और इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम ’अ’ ई उ ए अक्षरों से चालू होते हैं। इस नक्षत्र के तारों की संख्या अनेक है। इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है।
को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है।
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ऋग्वेद के देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अत: कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
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जानिए ज्योतिष विज्ञान के अनुसार आपका सूर्य कब अच्छा, कब शुभ फल देगा --
सूर्य संजीवनी जैसा फल देता है। सूर्य आपकी आत्मा है। इसीलिए, जन्मकुंडली का विचार करते समय ज्योतिष गण सूर्य का विचार पहले करते हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री कर अनुसार यह पूर्व दिशा में स्थान बली बनता है। राशि चक्र की 5वीं राशि यानी सिंह पर इसका आधिपत्य है। इसलिए, सिंह राशि में सूर्य स्वगृही बनता है। मेष राशि में 10 अंश का होने पर यह परम उच्च का हो जाता है। यानी यह बहुत ही अच्छी स्थिति में पहुंचकर अति शुभ हो जाता है। वहीं तुला राशि में 10 अंश का सूर्य नीच का गिना जाता है। इसके अलावा, मेष राशि में सूर्य में 0 से 10 अंश या डिग्री तक मूल त्रिकोण का होता है।
नक्षत्र के अनुसार मेष राशि में यह कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण, वृषभ राशि में 2,3,4 चरण, सिंह राशि में उत्तरा फाल्गुनी का प्रथम चरण, कन्या राशि में 2,3,4 चरण और धनु राशि में उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण और मकर राशि में उत्तराषाढ़ा के 2,3,4 चरण पर इसका आधिपत्य है।
विभिन्न ग्रहों की सूर्य से दूरी यह बताती है कि जातक पर सूर्य का कैसा शुभाशुभ प्रभाव पड़ेगा। साथ ही सूर्य किस राशि में है, वह उसकी नीच राशि, उच्च राशि, स्वगृही, मित्र या शत्रु राशि तो नहीं यह सब भी फलित ज्योतिष में फलादेश करते समय एक ज्योतिषी ध्यान में रखता है।
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ज्योतिष विद्याओं में अंक विद्या भी एक महत्वपूर्ण विद्या है। जिसके द्वारा हम थोडे समय में ही प्रश्न कर्ता के उत्तर दे सकते है।] अंक विद्या में “१” का अंकसूर्य को प्राप्त हुआ है। जिस तारीखको आपका जन्म हुआ है, उन तारीखों में अगरआपकी जन्म तारीख १,१०,१९,२८, है तो आपका भाग्यांक सूर्य का नम्बर “१”ही माना जायेगा.इसके अलावा जो आपका कार्मिक नम्बर होगा वह जन्म तारीख,महिना, और पूरा सन जोड़ने केबाद जो प्राप्त होगा, साथ ही कुल मिलाकर अकेले नम्बर को जब सामने लायेंगे, और वह नम्बर एक आताहै तो कार्मिक नम्बर ही माना जायेगा। जिन लोगों के जन्मतारीख के हिसाब से “१” नम्बर ही आता है उनके नाम अधिकतर ब, म, ट, और द से ही चालू होतेदेखे गये हैं। अम्क १ शुरुआती नम्बर है, इसके बिना कोई भी अंक चालूनहीं हो सकता है। इस अंक वाला जातक स्वाभिमानी होता है, उसके अन्दर केवल अपनेही अपने लिये सुनने की आदत होती है। जातक के अन्दर ईमानदारी भी होती है, और वह किसी के सामनेझुकने के लिये कभी राजी नहीं होता है। वह किसी के अधीन नहीं रहना चाहता है और सभीको अपने अधीन रखना चाहता है। अगर अंक १ वाला जातक अपने ही अंक के अधीन होकर यानीअपने ही अंक की तारीखों में काम करता है तो उसको सफ़लता मिलती चली जाती है। सूर्यप्रधान जातक बहुत तेजस्वी सदगुणी विद्वान उदार स्वभाव दयालु, और मनोबल में आत्मबल से पूर्ण होता है। वहअपने कार्य स्वत: ही करता है किसी के भरोसे रह कर काम करना उसे नहीं आता है। वह सरकारी नौकरी और सरकारी कामकाज केप्रति समर्पित होता है। वह अपने को अल्प समय में ही कुशल प्रसाशक बनालेता है। सूर्यप्रधान जातक में कुछ बुराइयां भी होतीं हैं। जैसे अभिमान,लोभ,अविनय,आलस्य,बाह्य दिखावा,जल्दबाजी,अहंकार, आदि दुर्गुण उसके जीवन में भरेहोते हैं। इन दुर्गुणों के कारण उसका विकाश सही तरीके से नहीं हो पाता है। साथ हीअपने दुश्मनो को नहीं पहिचान पाने के कारण उनसे परेशानी ही उठाता रहता है। हर काममें दखल देने की आदत भी जातक में होती है।
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ॐ सः सूर्याय नमः...
आदित्य, भास्कर या भगवान सूर्य की महिमा का बखान शब्दों में करना बहुत मुश्किल है। मनुष्य के संपूर्ण विकास में सूर्य की रोशनी का कितना महत्व है, इसे साइंस भी मानता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सूर्य, सौरमंडल का मुख्य प्रतिनिधि तारा है इसलिए एस्ट्रोलॉजी में इसका माहात्म्य भी सबसे अधिक है। मनुष्य सहित सभी जीवों पर सूर्य की रश्मियां अपना गहरा असर छोड़ती हैं। इन किरण रश्मियों से मनुष्य का भाग्य बहुत ज्यादा प्रभावित होता है।
यदि किसी इंसान के जन्म समय पर सूर्य की स्थिति कमजोर होती है तो जीवनभर उसका भाग्य डांवाडोल ही रहता है। सूर्य की अशुभ भावों में मौज़ूदगी जातक से पद-प्रतिष्ठा, वैभव, संपत्ति आदि छीन लेती है। ऐसे में उचित ज्योतिषीय उपायों का प्रयोग करना चाहिए ताकि सूर्य के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाकर जिंदगी में सफलता पाई जा सके।
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हस्तरेखा में सूर्य--
किसी भी जातक के जीवन में होने वाले प्रभाव को हथेली में अनामिका उंगली की जड में सूर्य पर्वत और उस पर बनी रेखाओं को देख कर सूर्य की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। सूर्य पर्वत पर बनी रेखायें ही सूर्य रेखा या सूर्य रेखायें कहलाती है।अनामिका उंगली के तर्जनी से लम्बी होने की स्थिति में ही व्यक्ति के राजकीय जीवन का फ़ल कथन किया जाता है। उन्नत पर्वत होने पर और पर्वत के मध्य सूक्ष्म गोल बिन्दु होने पर पर्वत के गुलाबी रंग का होने पर प्रतिष्ठ्त पद का कथन किया जाता है। इसी पर्वत के नीचे विवाह रेखा के उदय होने पर विवाह में राजनीति के चलते विवाह टूटने और अनैतिक सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।
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विविध ग्रहों के साथ सूर्य की युति का कुंडली पर प्रभाव---
सूर्य में से निकलने वाली किरणें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अन्य ग्रहों को प्रकाशित करती है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह का प्रभाव महत्वपूर्ण कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य यानी आत्मा और चंद्रमा यानी मन
जानिए जब सूर्य आपकी कुंडली में अलग–अलग ग्रहों के साथ होता है तो आपके लिए कैसे शुभ या अशुभ फल लेकर आता है।
सूर्य और चंद्र की युति---
ज्योतिष के नजरिये से सूर्य और चंद्रमा की बात करें तो सूर्य–चंद्र की युति जातक को दृढ़ निश्चयी बनाती है। यहां पर चंद्रमा सूर्य के कारकत्व को बढ़ा देता है।
सूर्य और मंगल की युति--
सूर्य व मंगल अर्थात आत्मा और साहस साथ–साथ हो तो वैदिक ज्योतिष के अनुसार अंगारक दोष बनता है। एेसे जातक बहुत गुस्सैल किस्म के होते हैं। किसी भी निर्णय में जल्दबाजी करते हैं जिसकी वजह से बहुधा अपनी टांग पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मार लेते हैं। मुसीबत मोल ले लेते हैं।
सूर्य और बुध की युति--
सूर्य और बुध की युति का विचार करें तो सूर्य (आत्मा) और बुध (बुद्धि) का समन्वय जातक को आंतरिक बुद्धि और वाह्य बुद्धि की एकरूपता को दर्शाता है। ग्रहों की एेसे युति वाले जातक निर्णय लेने में अत्यंत अडिग होते हैं। पिता और पुत्र दोनों की शैक्षणिक योग्यता अच्छी होती है। समाज में प्रतिष्ठित रहता है।
सूर्य और गुरु की युति--
सूर्य व गुरु अगर कुंडली में अगर एक साथ हो तो बहुत ही अच्छे आध्यात्मिक योग का निर्माण होता है। वेदों में सूर्य को आत्मा और गुरु को आंतरिक बुद्धि यानी अंतर्मन कहा गया है। सूर्य व गुरु की युति जातक को धर्म और अध्यात्म की ओर ले जाती है। इस युति का नकारात्मक पक्ष केवल इतना रहता है कि इससे जातक जिद्दी सा हो जाता है।
सूर्य और शुक्र की युति--
सूर्य व शुक्र यदि कुंडली में साथ आ जाए तो क्या कहने ! शुक्र जीवन की उमंग है तो सूर्य उसको देने वाली ऊर्जा। कुंडली में एेसे गुणों वाला जातक अपनी लाइफ को रॉयल यानी शाही तरीके से जीता है। हालांकि, पर्सनल लाइफ में मनमुटाव और असंतोष की भावना पैदा होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। जातक यदि अपनी लालसाओं पर काबू नहीं रख पाता तो वह विलासी, सौंदर्य प्रिय और स्त्री प्रिय होकर चीजों पर धन लुटाता रहता है।
सूर्य और शनि की युति--
सूर्य और शनि की युति होने पर यानी सूर्य और शनि यदि कुंडली में साथ बैठ जाएं तो शापित दोष बना लेते हैं। एेसे जातक के जीवन के अधिकांश भाग में संघर्षपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है। यहां दिलचस्प बात यह है कि पुराणों के अनुसार सूर्य और शनि के पिता–पुत्र के संबंध होने पर भी एक दूसरे के शत्रु हैं। इस प्रकार से पिता–पुत्र के बीच वैर व नाराजगी बढ़ जाने की आशंका बढ़ जाती है। नौकरीपेशा लोगों का वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मतभेद और असंतोष पैदा होता है।
सूर्य और राहु की युति--
सूर्य और राहु अगर किसी कुंडली में युति में आ जाएं तो ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहण योग बना लेते हैं। अगर ये डिग्रीकल (अंशात्मक) नजदीक हो और यह दोष कुंडली में 2,6,8 या 12वें भाव में बन रहा हो तो पितृदोष भी बनाता है। एेसे जातक को अपने जीवन के तमाम क्षेत्रों में अवरोध का सामना करना पड़ता है। मुसीबतों के पीछा न छोड़ने की वजह से जातक का अपने ऊपर से से भी आत्मविश्वास उठ जाता है।
सूर्य और केतु की युति--
सूर्य और केतु के साथ होने पर जातक के अंदर सूर्य के गुणों में कमी आ जाती है। वह मूर्ख, चंचल दिमाग का अस्थिर, विचित्र प्रवृत्ति, अन्याय का साथ देने वाला, हानिकारक एवं शंकालु स्वभाव का होता है।
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जानिए सूर्य किन बातों का प्रतिनिधित्व करता है, किन-किन वस्तुओं का कारक है---
ये तो सभी जानते हैं कि सूर्य एक तारा है जिसका स्वयं का प्रकाश है। अत्याधिक तप्त होने के कारण सूर्य का प्रभाव पृथ्वी पर सर्वाधिक पड़ता है। इसलिए मनुष्य के लिए इसकी उपयोगिता भी सबसे अधिक होती है।
सूर्य का कारकत्व उन सभी बातों पर प्रभाव डालता है जिसका प्राण और सूक्ष्म तत्व से संबध होता है। सूर्य यश-प्रतिष्ठा-वैभव का सर्वोत्तम प्रतीक है। सूर्य पिता का भी कारक है। यानि ऐसी बातें जो पोषण के लिए जिम्मेदार हैं, उनका भी कारक सूर्य है।
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सूर्य ग्रह के जप हेतु विभिन्न वैदिक ओर शाबर मंत्र--
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विनियोग :- ऊँ आकृष्णेनि मन्त्रस्य हिरण्यस्तूपांगिरस ऋषि स्त्रिष्टुप्छन्द: सूर्यो देवता सूर्यप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
देहान्गन्यास :- आकृष्णेन शिरसि, रजसा ललाटे, वर्तमानो मुखे, निवेशयन ह्रदये, अमृतं नाभौ, मर्त्यं च कट्याम, हिरण्येन सविता ऊर्व्वौ, रथेना जान्वो:, देवो याति जंघयो:, भुवनानि पश्यन पादयो:.
करन्यास :- आकृष्णेन रजसा अंगुष्ठाभ्याम नम:, वर्तमानो निवेशयन तर्जनीभ्याम नम:, अमृतं मर्त्यं च मध्यामाभ्याम नम:, हिरण्ययेन अनामिकाभ्याम नम:, सविता रथेना कनिष्ठिकाभ्याम नम:, देवो याति भुवनानि पश्यन करतलपृष्ठाभ्याम नम:
ह्रदयादिन्यास :- आकृष्णेन रजसा ह्रदयाय नम:, वर्तमानो निवेशयन शिरसे स्वाहा, अमृतं मर्त्यं च शिखायै वषट, हिरण्येन कवचाय हुम, सविता रथेना नेत्रत्र्याय वौषट, देवो याति भुवनानि पश्यन अस्त्राय फ़ट (दोनो हाथों को सिर के ऊपर घुमाकर दायें हाथ की पहली दोनों उंगलियों से बायें हाथ पर ताली बजायें.
ध्यानम :- पदमासन: पद मकरो द्विबाहु: पद मद्युति: सप्ततुरंगवाहन:। दिवाकरो लोकगुरु: किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देव: ॥
👉🏻👉🏻सूर्य गायत्री :- ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात.
👉🏻🌸सूर्य बीज मंत्र :- ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: ऊँ भूभुर्व: स्व: ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्तंच। हिण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: ह्रौं ह्रीं ह्रां ऊँ सूर्याय नम: ॥
👉🏻👉🏻सूर्य जप मंत्र :- ऊँ ह्राँ ह्रीँ ह्रौँ स: सूर्याय नम:। नित्य जाप ७००० प्रतिदिन।
👉🏻👉🏻मंत्र 'ॐ घृणि सूर्याय नम:' है।
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ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जन्म कुंडली मे सूर्य की नकारात्मक ऊर्जा मनुष्य को हर क्षेत्र में पीछे धकेल देती है। इसलिए सूर्य के प्रभाव को बढ़ाने के लिए अग्रलिखित उपाय आवश्यक हैं--
1. गुरुजनों, बुजुर्ग एवं माता-पिता की जितनी ही सेवा की जाएगी सूर्य का बल भी उतना ही अधिक बढ़ेगा।
2. किसी योग्य रत्नविद द्वारा सुझाए भार का माणिक्य सोने की अंगूठी में बनवाकर अनामिका अंगुली में रविवार को धारण करें। इसके विकल्प के रूप में गार्नेट उपरत्न भी धारण कर सकते हैं।
3. सूर्य को जल देते हुए प्रतिदिन 108 बार निम्नलिखित मंत्र का जप करें:
ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात (रविवार से शुरू करें)।
4. गाय को गेहूं और गुड़ मिलाकर खिलाएं या हर रविवार को किसी ब्राह्मण को गेहूं का दान करें।
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को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है।
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ऋग्वेद के देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अत: कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
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जानिए ज्योतिष विज्ञान के अनुसार आपका सूर्य कब अच्छा, कब शुभ फल देगा --
सूर्य संजीवनी जैसा फल देता है। सूर्य आपकी आत्मा है। इसीलिए, जन्मकुंडली का विचार करते समय ज्योतिष गण सूर्य का विचार पहले करते हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री कर अनुसार यह पूर्व दिशा में स्थान बली बनता है। राशि चक्र की 5वीं राशि यानी सिंह पर इसका आधिपत्य है। इसलिए, सिंह राशि में सूर्य स्वगृही बनता है। मेष राशि में 10 अंश का होने पर यह परम उच्च का हो जाता है। यानी यह बहुत ही अच्छी स्थिति में पहुंचकर अति शुभ हो जाता है। वहीं तुला राशि में 10 अंश का सूर्य नीच का गिना जाता है। इसके अलावा, मेष राशि में सूर्य में 0 से 10 अंश या डिग्री तक मूल त्रिकोण का होता है।
नक्षत्र के अनुसार मेष राशि में यह कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण, वृषभ राशि में 2,3,4 चरण, सिंह राशि में उत्तरा फाल्गुनी का प्रथम चरण, कन्या राशि में 2,3,4 चरण और धनु राशि में उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण और मकर राशि में उत्तराषाढ़ा के 2,3,4 चरण पर इसका आधिपत्य है।
विभिन्न ग्रहों की सूर्य से दूरी यह बताती है कि जातक पर सूर्य का कैसा शुभाशुभ प्रभाव पड़ेगा। साथ ही सूर्य किस राशि में है, वह उसकी नीच राशि, उच्च राशि, स्वगृही, मित्र या शत्रु राशि तो नहीं यह सब भी फलित ज्योतिष में फलादेश करते समय एक ज्योतिषी ध्यान में रखता है।
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ज्योतिष विद्याओं में अंक विद्या भी एक महत्वपूर्ण विद्या है। जिसके द्वारा हम थोडे समय में ही प्रश्न कर्ता के उत्तर दे सकते है।] अंक विद्या में “१” का अंकसूर्य को प्राप्त हुआ है। जिस तारीखको आपका जन्म हुआ है, उन तारीखों में अगरआपकी जन्म तारीख १,१०,१९,२८, है तो आपका भाग्यांक सूर्य का नम्बर “१”ही माना जायेगा.इसके अलावा जो आपका कार्मिक नम्बर होगा वह जन्म तारीख,महिना, और पूरा सन जोड़ने केबाद जो प्राप्त होगा, साथ ही कुल मिलाकर अकेले नम्बर को जब सामने लायेंगे, और वह नम्बर एक आताहै तो कार्मिक नम्बर ही माना जायेगा। जिन लोगों के जन्मतारीख के हिसाब से “१” नम्बर ही आता है उनके नाम अधिकतर ब, म, ट, और द से ही चालू होतेदेखे गये हैं। अम्क १ शुरुआती नम्बर है, इसके बिना कोई भी अंक चालूनहीं हो सकता है। इस अंक वाला जातक स्वाभिमानी होता है, उसके अन्दर केवल अपनेही अपने लिये सुनने की आदत होती है। जातक के अन्दर ईमानदारी भी होती है, और वह किसी के सामनेझुकने के लिये कभी राजी नहीं होता है। वह किसी के अधीन नहीं रहना चाहता है और सभीको अपने अधीन रखना चाहता है। अगर अंक १ वाला जातक अपने ही अंक के अधीन होकर यानीअपने ही अंक की तारीखों में काम करता है तो उसको सफ़लता मिलती चली जाती है। सूर्यप्रधान जातक बहुत तेजस्वी सदगुणी विद्वान उदार स्वभाव दयालु, और मनोबल में आत्मबल से पूर्ण होता है। वहअपने कार्य स्वत: ही करता है किसी के भरोसे रह कर काम करना उसे नहीं आता है। वह सरकारी नौकरी और सरकारी कामकाज केप्रति समर्पित होता है। वह अपने को अल्प समय में ही कुशल प्रसाशक बनालेता है। सूर्यप्रधान जातक में कुछ बुराइयां भी होतीं हैं। जैसे अभिमान,लोभ,अविनय,आलस्य,बाह्य दिखावा,जल्दबाजी,अहंकार, आदि दुर्गुण उसके जीवन में भरेहोते हैं। इन दुर्गुणों के कारण उसका विकाश सही तरीके से नहीं हो पाता है। साथ हीअपने दुश्मनो को नहीं पहिचान पाने के कारण उनसे परेशानी ही उठाता रहता है। हर काममें दखल देने की आदत भी जातक में होती है।
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ॐ सः सूर्याय नमः...
आदित्य, भास्कर या भगवान सूर्य की महिमा का बखान शब्दों में करना बहुत मुश्किल है। मनुष्य के संपूर्ण विकास में सूर्य की रोशनी का कितना महत्व है, इसे साइंस भी मानता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सूर्य, सौरमंडल का मुख्य प्रतिनिधि तारा है इसलिए एस्ट्रोलॉजी में इसका माहात्म्य भी सबसे अधिक है। मनुष्य सहित सभी जीवों पर सूर्य की रश्मियां अपना गहरा असर छोड़ती हैं। इन किरण रश्मियों से मनुष्य का भाग्य बहुत ज्यादा प्रभावित होता है।
यदि किसी इंसान के जन्म समय पर सूर्य की स्थिति कमजोर होती है तो जीवनभर उसका भाग्य डांवाडोल ही रहता है। सूर्य की अशुभ भावों में मौज़ूदगी जातक से पद-प्रतिष्ठा, वैभव, संपत्ति आदि छीन लेती है। ऐसे में उचित ज्योतिषीय उपायों का प्रयोग करना चाहिए ताकि सूर्य के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाकर जिंदगी में सफलता पाई जा सके।
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हस्तरेखा में सूर्य--
किसी भी जातक के जीवन में होने वाले प्रभाव को हथेली में अनामिका उंगली की जड में सूर्य पर्वत और उस पर बनी रेखाओं को देख कर सूर्य की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। सूर्य पर्वत पर बनी रेखायें ही सूर्य रेखा या सूर्य रेखायें कहलाती है।अनामिका उंगली के तर्जनी से लम्बी होने की स्थिति में ही व्यक्ति के राजकीय जीवन का फ़ल कथन किया जाता है। उन्नत पर्वत होने पर और पर्वत के मध्य सूक्ष्म गोल बिन्दु होने पर पर्वत के गुलाबी रंग का होने पर प्रतिष्ठ्त पद का कथन किया जाता है। इसी पर्वत के नीचे विवाह रेखा के उदय होने पर विवाह में राजनीति के चलते विवाह टूटने और अनैतिक सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।
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विविध ग्रहों के साथ सूर्य की युति का कुंडली पर प्रभाव---
सूर्य में से निकलने वाली किरणें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अन्य ग्रहों को प्रकाशित करती है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह का प्रभाव महत्वपूर्ण कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य यानी आत्मा और चंद्रमा यानी मन
जानिए जब सूर्य आपकी कुंडली में अलग–अलग ग्रहों के साथ होता है तो आपके लिए कैसे शुभ या अशुभ फल लेकर आता है।
सूर्य और चंद्र की युति---
ज्योतिष के नजरिये से सूर्य और चंद्रमा की बात करें तो सूर्य–चंद्र की युति जातक को दृढ़ निश्चयी बनाती है। यहां पर चंद्रमा सूर्य के कारकत्व को बढ़ा देता है।
सूर्य और मंगल की युति--
सूर्य व मंगल अर्थात आत्मा और साहस साथ–साथ हो तो वैदिक ज्योतिष के अनुसार अंगारक दोष बनता है। एेसे जातक बहुत गुस्सैल किस्म के होते हैं। किसी भी निर्णय में जल्दबाजी करते हैं जिसकी वजह से बहुधा अपनी टांग पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मार लेते हैं। मुसीबत मोल ले लेते हैं।
सूर्य और बुध की युति--
सूर्य और बुध की युति का विचार करें तो सूर्य (आत्मा) और बुध (बुद्धि) का समन्वय जातक को आंतरिक बुद्धि और वाह्य बुद्धि की एकरूपता को दर्शाता है। ग्रहों की एेसे युति वाले जातक निर्णय लेने में अत्यंत अडिग होते हैं। पिता और पुत्र दोनों की शैक्षणिक योग्यता अच्छी होती है। समाज में प्रतिष्ठित रहता है।
सूर्य और गुरु की युति--
सूर्य व गुरु अगर कुंडली में अगर एक साथ हो तो बहुत ही अच्छे आध्यात्मिक योग का निर्माण होता है। वेदों में सूर्य को आत्मा और गुरु को आंतरिक बुद्धि यानी अंतर्मन कहा गया है। सूर्य व गुरु की युति जातक को धर्म और अध्यात्म की ओर ले जाती है। इस युति का नकारात्मक पक्ष केवल इतना रहता है कि इससे जातक जिद्दी सा हो जाता है।
सूर्य और शुक्र की युति--
सूर्य व शुक्र यदि कुंडली में साथ आ जाए तो क्या कहने ! शुक्र जीवन की उमंग है तो सूर्य उसको देने वाली ऊर्जा। कुंडली में एेसे गुणों वाला जातक अपनी लाइफ को रॉयल यानी शाही तरीके से जीता है। हालांकि, पर्सनल लाइफ में मनमुटाव और असंतोष की भावना पैदा होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। जातक यदि अपनी लालसाओं पर काबू नहीं रख पाता तो वह विलासी, सौंदर्य प्रिय और स्त्री प्रिय होकर चीजों पर धन लुटाता रहता है।
सूर्य और शनि की युति--
सूर्य और शनि की युति होने पर यानी सूर्य और शनि यदि कुंडली में साथ बैठ जाएं तो शापित दोष बना लेते हैं। एेसे जातक के जीवन के अधिकांश भाग में संघर्षपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है। यहां दिलचस्प बात यह है कि पुराणों के अनुसार सूर्य और शनि के पिता–पुत्र के संबंध होने पर भी एक दूसरे के शत्रु हैं। इस प्रकार से पिता–पुत्र के बीच वैर व नाराजगी बढ़ जाने की आशंका बढ़ जाती है। नौकरीपेशा लोगों का वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मतभेद और असंतोष पैदा होता है।
सूर्य और राहु की युति--
सूर्य और राहु अगर किसी कुंडली में युति में आ जाएं तो ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहण योग बना लेते हैं। अगर ये डिग्रीकल (अंशात्मक) नजदीक हो और यह दोष कुंडली में 2,6,8 या 12वें भाव में बन रहा हो तो पितृदोष भी बनाता है। एेसे जातक को अपने जीवन के तमाम क्षेत्रों में अवरोध का सामना करना पड़ता है। मुसीबतों के पीछा न छोड़ने की वजह से जातक का अपने ऊपर से से भी आत्मविश्वास उठ जाता है।
सूर्य और केतु की युति--
सूर्य और केतु के साथ होने पर जातक के अंदर सूर्य के गुणों में कमी आ जाती है। वह मूर्ख, चंचल दिमाग का अस्थिर, विचित्र प्रवृत्ति, अन्याय का साथ देने वाला, हानिकारक एवं शंकालु स्वभाव का होता है।
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जानिए सूर्य किन बातों का प्रतिनिधित्व करता है, किन-किन वस्तुओं का कारक है---
ये तो सभी जानते हैं कि सूर्य एक तारा है जिसका स्वयं का प्रकाश है। अत्याधिक तप्त होने के कारण सूर्य का प्रभाव पृथ्वी पर सर्वाधिक पड़ता है। इसलिए मनुष्य के लिए इसकी उपयोगिता भी सबसे अधिक होती है।
सूर्य का कारकत्व उन सभी बातों पर प्रभाव डालता है जिसका प्राण और सूक्ष्म तत्व से संबध होता है। सूर्य यश-प्रतिष्ठा-वैभव का सर्वोत्तम प्रतीक है। सूर्य पिता का भी कारक है। यानि ऐसी बातें जो पोषण के लिए जिम्मेदार हैं, उनका भी कारक सूर्य है।
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सूर्य ग्रह के जप हेतु विभिन्न वैदिक ओर शाबर मंत्र--
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विनियोग :- ऊँ आकृष्णेनि मन्त्रस्य हिरण्यस्तूपांगिरस ऋषि स्त्रिष्टुप्छन्द: सूर्यो देवता सूर्यप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
देहान्गन्यास :- आकृष्णेन शिरसि, रजसा ललाटे, वर्तमानो मुखे, निवेशयन ह्रदये, अमृतं नाभौ, मर्त्यं च कट्याम, हिरण्येन सविता ऊर्व्वौ, रथेना जान्वो:, देवो याति जंघयो:, भुवनानि पश्यन पादयो:.
करन्यास :- आकृष्णेन रजसा अंगुष्ठाभ्याम नम:, वर्तमानो निवेशयन तर्जनीभ्याम नम:, अमृतं मर्त्यं च मध्यामाभ्याम नम:, हिरण्ययेन अनामिकाभ्याम नम:, सविता रथेना कनिष्ठिकाभ्याम नम:, देवो याति भुवनानि पश्यन करतलपृष्ठाभ्याम नम:
ह्रदयादिन्यास :- आकृष्णेन रजसा ह्रदयाय नम:, वर्तमानो निवेशयन शिरसे स्वाहा, अमृतं मर्त्यं च शिखायै वषट, हिरण्येन कवचाय हुम, सविता रथेना नेत्रत्र्याय वौषट, देवो याति भुवनानि पश्यन अस्त्राय फ़ट (दोनो हाथों को सिर के ऊपर घुमाकर दायें हाथ की पहली दोनों उंगलियों से बायें हाथ पर ताली बजायें.
ध्यानम :- पदमासन: पद मकरो द्विबाहु: पद मद्युति: सप्ततुरंगवाहन:। दिवाकरो लोकगुरु: किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देव: ॥
👉🏻👉🏻सूर्य गायत्री :- ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात.
👉🏻🌸सूर्य बीज मंत्र :- ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: ऊँ भूभुर्व: स्व: ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्तंच। हिण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: ह्रौं ह्रीं ह्रां ऊँ सूर्याय नम: ॥
👉🏻👉🏻सूर्य जप मंत्र :- ऊँ ह्राँ ह्रीँ ह्रौँ स: सूर्याय नम:। नित्य जाप ७००० प्रतिदिन।
👉🏻👉🏻मंत्र 'ॐ घृणि सूर्याय नम:' है।
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ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जन्म कुंडली मे सूर्य की नकारात्मक ऊर्जा मनुष्य को हर क्षेत्र में पीछे धकेल देती है। इसलिए सूर्य के प्रभाव को बढ़ाने के लिए अग्रलिखित उपाय आवश्यक हैं--
1. गुरुजनों, बुजुर्ग एवं माता-पिता की जितनी ही सेवा की जाएगी सूर्य का बल भी उतना ही अधिक बढ़ेगा।
2. किसी योग्य रत्नविद द्वारा सुझाए भार का माणिक्य सोने की अंगूठी में बनवाकर अनामिका अंगुली में रविवार को धारण करें। इसके विकल्प के रूप में गार्नेट उपरत्न भी धारण कर सकते हैं।
3. सूर्य को जल देते हुए प्रतिदिन 108 बार निम्नलिखित मंत्र का जप करें:
ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात (रविवार से शुरू करें)।
4. गाय को गेहूं और गुड़ मिलाकर खिलाएं या हर रविवार को किसी ब्राह्मण को गेहूं का दान करें।
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