रत्नों के माध्यम से रोगोपचार.

प्रिय मित्रों/पाठकों, ज्योतिष शास्त्र मानता है कि रत्नों को कुंडली के अनुसार धारण करने से रत्न जातक में रोगों से लड़ने की शक्ति पैदा करते हैं। आयुर्वेद में रत्नों की भस्म द्वारा रोग निवारण के प्रयोग बताए गए हैं। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जीवन में सुख की कामना की पूर्ति के लिए रत्‍न धारण करने की सलाह दी जाती है। ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए रत्‍न पहने जाते हैं लेकिन सेहत पर भी इन रत्‍नों का बहुत बढिया असर देखेने को मिलता है। कई रोगों से बचाव के लिए रत्‍न धारण किए जाते हैं।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार रत्न ना केवल भाग्योदय कारक होते अपितु स्वास्थ्य रक्षा तथा रोगोपचार में भी इनका महत्व है क्योंकि रत्न भी उन्हीं तत्वों और यौगिकों के सम्मिश्रण से बने हैं जिनसे मानव देह और ब्रह्मांड। अपने यौगिकों के अनुसार ही इन रत्नों का रंग होता है। अपनी आकर्षण एवं विकर्षण शक्तियों के द्वारा शरीर में विभिन्न तत्वों का संतुलन बनाए रखने में ये सक्षम होते हैं तथा जिस तत्व (दोष या मल) की वृद्धि से शरीर में विकृति (रोग) उत्पन्न हुई हो उसे नियंत्रित करते हैं।

रत्न धारण से स्वास्थ्य लाभ और रोगोपचार तो होता ही है, आयुर्वेद में भी विभिन्न रत्नों की भस्म आदि के द्वारा रोगी का उपचार होता है। रत्न धारण में रत्नों के द्वारा विभिन्न रंगों की बह्मांडीय ग्रह रश्मियों, किरणों को शरीर में प्रविष्ट कराकर विसर्जित किया जाता है, क्योंकि रत्न इसके सशक्त माध्यम हैं। विद्वानों ने विभिन्न रत्नों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है और किस रत्न से किस रोग की शांति होती है इस पर व्यापक अनुसंधान किया है।

रत्न भाग्योन्नति में तो सहायक होते ही हैं क्योंकि रत्नों में ग्रहों की ऊर्जा होती है। यही शुभ ऊर्जा स्वास्थ्य भी प्रदान करती है।
रत्न धारण करने के लिए हमेशा कुंडली का सही निरिक्षण अति आवश्यक है। कुंडली के सही निरिक्षण के बिना रत्न धारण करना नुकसान दायक हो सकता है। अतः किसी योग्य ओर अनुभवी ज्योतिर्विद से परामर्श लेकर रोग अनुसार रत्न धारण करना चाहिए।

ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि किसी भी जन्म कुण्डली में लग्न, मनुष्य का आईना होता है। इसमें जातक के शरीर, स्वभाव, रूप, गुण आदि का विचार किया जाता है। शास्त्रों में इसके आधार पर रोगों का विचार भी किया जाता है। लग्न के अनुसार शरीर को लग रहे रोगों के बारे में हम जान सकते हैं। रोग होने से पहले हम सावधानियां रख सकते हैं। हम रत्न धारण द्वारा भी अनेक रोगों से मुक्ति पा सकते हैं।


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उच्च रक्तचाप और रत्न चिकित्सा:-

चन्द्रमा हृदय का स्वामी है। चन्द्रमा के पीड़ित होने पर इस रोग की संभावना बनती है। जिनकी जन्मपत्री में सूर्य, शनि, चन्द्र, राहु अथवा मंगल की युति कर्क राशि में होती है उन्हें भी इस रोग की आशंका रहती है। पाप ग्रह राहु और केतु जब चन्द्रमा के साथ योग बनाते हैं तब इस स्थिति में व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना होता है। मिथुन राशि में पाप ग्रहों की उपस्थिति होने पर भी यह रोग पीड़ित करता है। इस रोग की स्थिति में 7-9 रत्ती का मूंगा धारण करना लाभप्रद होता है। चन्द्र के रत्न मोती या मूनस्टोन  भी मूंगा के साथ धारण करने से विशेष लाभ मिलता है।
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तपेदिक और रत्न चिकित्सा:-  तपेदिक एक घातक रोग है। नियमित दवाईयों के सेवन से इस रोग को दूर किया जा सकता है। अगर उपयुक्त रत्नों को धारण किया जाए तो चिकित्सा का लाभ जल्दी प्राप्त हो सकता है। ज्योतिष विधा के अनुसार जब मिथुन राशि में चन्द्रमा, शनि, अथवा बृहस्पति होता है या कुम्भ राशि में मंगल और केतु पीड़ित होता है तो तपेदिक रोग की संभावना बनती है। इस रोग से पीड़ित होने पर पुखराज, मोती अथवा मूंगा धारण करना लाभप्रद होता है।
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पैरों में रोग और रत्न चिकित्सा  :-

शरीर के अंगों में पैरों का स्वामी शनि होता है। पैरों से सम्बन्धित पीड़ा का कारण शनि का पीड़ित या पाप प्रभाव में होना है। ज्योतिषीय मतानुसार जन्मपत्री के छठे भाव में सूर्य अथवा शनि होने पर पैरों में कष्ट का सामना करना होता है। जल राशि मकर, कुम्भ अथवा मीन में जब राहु, केतु, सूर्य या शनि होता है तब पैरों में चर्म रोग होने की संभावना बनती है। पैरों से सम्बन्धित रोग में लाजवर्त, नीलम अथवा नीली एवं पुखराज धारण करने से लाभ मिलता है।
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त्वचा रोग और रत्न चिकित्सा :-

शुक्र त्वचा का स्वामी ग्रह है। बृहस्पति अथवा मंगल से पीड़ित होने पर शुक्र त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे दाद, खाज, खुजली, एक्जीमा देता है। कुण्डली में सूर्य और मंगल का योग होने पर भी त्वचा सम्बन्धी रोग की सम्भावना रहती है। मंगल मंद होने पर भी इस रोग की पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है। जन्मपत्री में इस प्रकार की स्थिति होने पर हीरा, स्फटिक या मूंगा  धारण करने से लाभ मिलता है।
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बवासीर और रत्न चिकित्सा :-

बवासीर गुदा का रोग है। जन्मकुण्डली का सप्तम भाव गुदा का कारक होता है। जिनकी जन्मपत्री के सप्तम भाव में पाप ग्रहों की उपस्थिति होती है उन्हें इस रोग की संभावना रहती है, मंगल की दृष्टि इस संभावना को और भी प्रबल बना देती है। मंगल की राशि वृश्चिक कुण्डली में पाप प्रभाव में होने से भी बवासीर होने की संभवना को बल मिलता है। अष्टम भाव में शनि व राहु हो अथवा द्वादश भाव में चन्द्र और सूर्य का योग हो तो इस रोग की पीड़ा का सामना करना होता है। इस रोग में मोती, मूनस्टोन अथवा मूंगा धारण करना रत्न चिकित्सा की दृष्टि से लाभप्रद होता है।
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भूलने की बीमारी और रत्न चिकित्सा :-

इस रोग में बीती हुई बहुत सी घटनाएं अथवा बातें याद नहीं रहती है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में जब लग्न और लग्नेश पाप पीड़ित होते हैं तो इस प्रकार की स्थिति होती है.सूर्य और बुध जब मेष राशि में होता है और शुक्र अथवा शनि उसे पीड़ित करते हैं तो स्मृति दोष की संभावना बनती है.साढे साती के समय जब शनि की महादशा चलती है उस समय भी भूलने की बीमारी की संभावना प्रबल रहती ह.रत्न चिकित्सा पद्धति के अनुसार मोती और माणिक्य धारण करना इय रोग मे लापप्रद होता है I
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सफेद दाग़ और रत्न चिकित्सा :-

 सफेद दाग़ त्वचा सम्बन्धी रोग है.इस रोग में त्वचा पर सफेद रंग के चकत्ते उभर आते हैं.यह रोग तब होता है जब वृष, राशि में चन्द्र, मंगल एवं शनि का योग बनता है.कर्क, मकर, कुम्भ और मीन को जल राशि के नाम से जाना जाता है.चन्द्रमा और शुक्र जब इस राशि में युति बनाते हैं तो व्यक्ति इस रोग से पीड़ित होने की संभावना रहती है.बुध के शत्रु राशि में होने पर अथवा वक्री होने पर भी इस रोग की संभावना बनती है.इस रोग की स्थिति में  मोती एवं पुखराज धारण करने से लाभ मिलता है I
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गंजापन और रत्न चिकित्सा :- गंजापन बालों के झड़ने से सम्बन्धित रोग है.आनुवांशिक कारणों के अलावा यह रोग एलर्जी अथवा किसी अन्य रोग के कारण होता है.जिनकी कुण्डली के लग्न स्थान में तुला अथवा मेष राशि में स्थित होकर सूर्य शनि पर दृष्टि डालता है उन्हें गंजेपन की समस्या से पीड़ित होने की संभावना अधिक रहती है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नीलम और पन्ना धारण करके इस समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है I
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मधुमेह और रत्न चिकित्सा :- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मधुमेह यानी डयबिटीज का सामना उस स्थिति में करना होता है जबकि कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि में पाप ग्रहों की संख्या दो या उससे अधिक रहती है.लग्नपति के साथ बृहस्पति छठे भाव में हो तुला राशि में पाप ग्रहों की संख्या दो अथवा उससे अधिक हो तो इस रोग की संभावना बनती है.अष्टमेश और षष्ठेश कुण्डली में जब एक दूसरे के घर में होते हैं तब भी इस रोग का भय रहता है.रत्न चिकित्सा के अन्तर्गत इस रोग में मूंगा और पुखराज धारण करना लाभप्रद होता है I
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दन्त रोग और रत्न ज्योतिष :- दांतों का स्वामी बृहस्पति होता है.कुण्डली में बृहस्पति के पीड़ित होने पर दांतों में तकलीफ का सामना करना होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बृहस्पति जब नीच राशि में होता है अथवा द्वितीय, नवम एवं द्वादश भाव में होता है तब दांत सम्बन्धी तकलीफ का सामना करना होता है.मूंगा और पुखराज इस रोग में लाभदायक होता है I
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