सरस्वती देवी
परिचय
सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है। शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है। पशु को मनुष्य बनाने का - अंधे को नेत्र मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है। शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती पूजा की परम्परा है। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं।
सरस्वती --विद्या, संगीत, कला की देवी
मंत्र --ॐ एं सरस्वत्यै नमः
अस्त्र --वीणा, जपमाला
माता-पिता --ब्रह्मा (father)
सवारी --हंस, मोर..
सरस्वती माँ के अन्य नामों में शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती आदि कई नामों से जाना जाता है।
कब मनेगी 2019 में बसन्त पंचमी--
इस वर्ष 2019 में बसंत पंचमी की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति है। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि पंचमी तिथि 2 दिन लग रही है। देश के कुछ भागों में चतुर्थी तिथि 9 तारीख को दोपहर से पहले ही समाप्त हो जा रही है और पंचमी तिथि शुरू हो रही है और 10 तारीख को पंचमी तिथि 2 बजकर 9 मिनट तक है। ऐसे में सरस्वती पूजन किस दिन करना शुभ रहेगा जानिए क्या कहते हैं शास्त्र।
कहां किस दिन सरस्वती पूजा?
पंजाब, जम्मू, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मां सरस्वती पूजा का पर्व 9 फरवरी को मनाया जाना शास्त्र सम्मत होगा क्योंकि इन क्षेत्रों में 9 तारीख को दोपहर से पहले ही पंचमी तिथि लग जाएगी। जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में यह पर्व 10 फरवरी को मनाया जाएगा। इसकी वजह यह है कि यहां 9 तारीख को दोपहर के बाद पंचमी तिथि लगेगी इसलिए 10 तारीख को सरस्वती पूजन करना शास्त्र सम्मत होगा।
बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त: सुबह 6.40 बजे से दोपहर 12.12 बजे तक
पंचमी तिथि प्रारंभ: मघ शुक्ल पंचमी शनिवार 9 फरवरी की दोपहर 12.25 बजे से शुरू
पंचमी तिथि समाप्त: रविवार 10 फरवरी को दोपहर 2.08 बजे तक
पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं कि बसंत पंचमी यानी माघ शुक्ल पंचमी तिथि को ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का विधान है। इसलिए हर साल इस दिन पंडालों और घरों में देवी सरस्वती की प्रतिमा और तस्वीर को रखकर पूजा की जाती है।
इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा ने जीव-जंतुओं और मनुष्यों उत्पन्न किया और इन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन कुछ पल में उन्हें ऐसा लगने लगा कि उनकी सृष्टि मूक है, इनमें जीवित होने का अहसास ही नहीं है। इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव से अपनी समस्या बताई। शिवजी के कहने पर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुईं।
उस स्त्री के एक हाथ में वीणा थी और दूसरा हाथ वरमुद्रा में था। बाकी दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। जलधारा से कलकल का स्वर फूटने लगा। हवा सरसर की अावज से बहने लगी।
तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। देवी सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी, वीणापाणी और वाग्देवी समेत कई नामों से देवताओं और ऋषियों ने नमस्कार और पूजन किया। ब्रह्माजी ने देवी सरस्वती को वसंत पंचमी के दिन ही प्रकट किया था इसलिए इस दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव और पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
देवी सरस्वती स्तोत्रम्---
श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता।
श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥
श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता।
वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभिः स्तुत्यते सदा॥
स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्।
ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥
या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरैः।
सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥
॥इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥
मां सरस्वती का श्लोक --
मां सरस्वती की आराधना करते वक्त इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए:
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च
सरस्वती पूजन में रखें इन बातों का ध्यान--
देवी सरस्वती ज्ञान और आत्मिक शांति की प्रतीक हैं। इनकी प्रसन्नता के लिए पूजा में सफेद और पीले रंग के फूलों और वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि देवी सरस्वती को प्रसाद स्वरूप बूंदी, बेर, चूरमा, चावल का खीर भोग लगाना चाहिए। इस दिन से बसंत का आगमन हो जाता है इसलिए देवी को गुलाब अर्पित करना चाहिए और गुलाल से एक-दूसरे को टीका लगाना चाहिए।
जानिए क्यों की जाती है सरस्वती और कामदेव की पूजा बसन्त पंचमी पर।।
मंत्र, शुभ मुहूर्त और महत्व
किसानों के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व है.
बसंत पंचमी पर सरसों के खेत लहलहा उठते हैं. चना, जौ, ज्वार और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं. इस दिन से बसंत ऋतु का प्रारंभ होता है. यूं तो भारत में छह ऋतुएं होती हैं लेकिन बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. इस दौरान मौसम सुहाना हो जाता है और पेड़-पौधों में नए फल-फूल पल्लवित होने लगते हैं. इस दिन कई जगहों पर पतंगबाजी भी होती है। बसंत ऋतु में मौसम सुहाना हो जाता है और मान्यता है कि कामदेव पूरा माहौल रूमानी कर देते हैं. दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बसंत कामदेव के मित्र हैं, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है. जब कामदेव कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है. इनके बाणों का कोई कवच नहीं है. बसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु माना जाता है. इसमें फूलों के बाणों को खाकर दिल प्रेम से सराबोर हो जाता है. इन कारणों से बसंत पंचमी के दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा की जाती है।
बाली द्वीप में सरस्वती की प्रतिमा--
कहते हैं कि महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती उपासना के सहारे उच्च कोटि के विद्वान् बने थे। इसका सामान्य तात्पर्य तो इतना ही है कि ये लोग अधिक मनोयोग एवं उत्साह के साथ अध्ययन में रुचिपूवर्क संलग्न हो गए और अनुत्साह की मनःस्थिति में प्रसुप्त पड़े रहने वाली मस्तिष्कीय क्षमता को सुविकसित कर सकने में सफल हुए होंगे। इसका एक रहस्य यह भी हो सकता है कि कारणवश दुर्बलता की स्थिति में रह रहे बुद्धि-संस्थान को सजग-सक्षम बनाने के लिए वे उपाय-उपचार किए गए जिन्हें 'सरस्वती आराधना' कहा जाता है। उपासना की प्रक्रिया भाव-विज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग है। श्रद्धा और तन्मयता के समन्वय से की जाने वाली साधना-प्रक्रिया एक विशिष्ट शक्ति है। मनःशास्त्र के रहस्यों को जानने वाले स्वीकार करते हैं कि व्यायाम, अध्ययन, कला, अभ्यास की तरह साधना भी एक समर्थ प्रक्रिया है, जो चेतना क्षेत्र की अनेकानेक रहस्यमयी क्षमताओं को उभारने तथा बढ़ाने में पूणर्तया समर्थ है। सरस्वती उपासना के संबंध में भी यही बात है। उसे शास्त्रीय विधि से किया जाय तो वह अन्य मानसिक उपचारों की तुलना में बौद्धिक क्षमता विकसित करने में कम नहीं, अधिक ही सफल होती है।
मन्त्र जाप के फल -- मन्दबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्त्व अधिक हितकर सिद्घ होता है। बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है। मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द्, तनाव, जुकाम जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश-सरस्वती साधना का लाभ मिलता है। कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निणर्य न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है। उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है।
शिक्षा -- शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूवर्क समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है। बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाय और उसके लिए धन कमाने, बल बढ़ाने, साधन जुटाने, मोद मनाने से भी अधिक ध्यान दिया जाय। इस लोकोपयोगी प्रेरणा को गायत्री महाशक्ति के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण धारा सरस्वती की मानी गयी है और उससे लाभान्वित होने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।
सरस्वती के स्वरूप एवं आसन आदि का संक्षिप्त तात्त्विक विवेचन इस तरह है-
स्वरूप --सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं। मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है। वाहन मयूर-सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। इनका वाहन हंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेद और माला होती है। भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती हैं।
देवी सरस्वती वंदना--
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥
अन्य देशों में सरस्वती -- जापान में सरस्वती को 'बेंजाइतेन' कहते हैं। जापान में उनका चित्रन हाथ में एक संगीत वाद्य लिए हुए किया जाता है। जापान में वे ज्ञान, संगीत तथा 'प्रवाहित होने वाली' वस्तुओं की देवी के रूप में पूजित हैं।
दक्षिण एशिया के अलावा थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, जापान एवं अन्य देशों में भी सरस्वती की पूजा होती है।
अन्य भाषाओ/देशों में सरस्वती के नाम---
बर्मा - थुयथदी (သူရဿတီ=सूरस्सती, उच्चारण: [θùja̰ðədì] या [θùɹa̰ðədì])
बर्मा - तिपिटक मेदा Tipitaka Medaw (တိပိဋကမယ်တော်, उच्चारण: [tḭpḭtəka̰ mɛ̀dɔ̀])
चीन - बियानचाइत्यान Biàncáitiān (辯才天)
जापान - बेंजाइतेन Benzaiten (弁才天/弁財天)
थाईलैण्ड - सुरसवदी Surasawadee (สุรัสวดี)
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परिचय
सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है। शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है। पशु को मनुष्य बनाने का - अंधे को नेत्र मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है। शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती पूजा की परम्परा है। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं।
सरस्वती --विद्या, संगीत, कला की देवी
मंत्र --ॐ एं सरस्वत्यै नमः
अस्त्र --वीणा, जपमाला
माता-पिता --ब्रह्मा (father)
सवारी --हंस, मोर..
सरस्वती माँ के अन्य नामों में शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती आदि कई नामों से जाना जाता है।
कब मनेगी 2019 में बसन्त पंचमी--
इस वर्ष 2019 में बसंत पंचमी की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति है। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि पंचमी तिथि 2 दिन लग रही है। देश के कुछ भागों में चतुर्थी तिथि 9 तारीख को दोपहर से पहले ही समाप्त हो जा रही है और पंचमी तिथि शुरू हो रही है और 10 तारीख को पंचमी तिथि 2 बजकर 9 मिनट तक है। ऐसे में सरस्वती पूजन किस दिन करना शुभ रहेगा जानिए क्या कहते हैं शास्त्र।
कहां किस दिन सरस्वती पूजा?
पंजाब, जम्मू, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मां सरस्वती पूजा का पर्व 9 फरवरी को मनाया जाना शास्त्र सम्मत होगा क्योंकि इन क्षेत्रों में 9 तारीख को दोपहर से पहले ही पंचमी तिथि लग जाएगी। जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में यह पर्व 10 फरवरी को मनाया जाएगा। इसकी वजह यह है कि यहां 9 तारीख को दोपहर के बाद पंचमी तिथि लगेगी इसलिए 10 तारीख को सरस्वती पूजन करना शास्त्र सम्मत होगा।
बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त: सुबह 6.40 बजे से दोपहर 12.12 बजे तक
पंचमी तिथि प्रारंभ: मघ शुक्ल पंचमी शनिवार 9 फरवरी की दोपहर 12.25 बजे से शुरू
पंचमी तिथि समाप्त: रविवार 10 फरवरी को दोपहर 2.08 बजे तक
पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं कि बसंत पंचमी यानी माघ शुक्ल पंचमी तिथि को ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का विधान है। इसलिए हर साल इस दिन पंडालों और घरों में देवी सरस्वती की प्रतिमा और तस्वीर को रखकर पूजा की जाती है।
इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा ने जीव-जंतुओं और मनुष्यों उत्पन्न किया और इन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन कुछ पल में उन्हें ऐसा लगने लगा कि उनकी सृष्टि मूक है, इनमें जीवित होने का अहसास ही नहीं है। इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव से अपनी समस्या बताई। शिवजी के कहने पर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुईं।
उस स्त्री के एक हाथ में वीणा थी और दूसरा हाथ वरमुद्रा में था। बाकी दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। जलधारा से कलकल का स्वर फूटने लगा। हवा सरसर की अावज से बहने लगी।
तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। देवी सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी, वीणापाणी और वाग्देवी समेत कई नामों से देवताओं और ऋषियों ने नमस्कार और पूजन किया। ब्रह्माजी ने देवी सरस्वती को वसंत पंचमी के दिन ही प्रकट किया था इसलिए इस दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव और पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
देवी सरस्वती स्तोत्रम्---
श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता।
श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥
श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता।
वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभिः स्तुत्यते सदा॥
स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्।
ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥
या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरैः।
सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥
॥इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥
मां सरस्वती का श्लोक --
मां सरस्वती की आराधना करते वक्त इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए:
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च
सरस्वती पूजन में रखें इन बातों का ध्यान--
देवी सरस्वती ज्ञान और आत्मिक शांति की प्रतीक हैं। इनकी प्रसन्नता के लिए पूजा में सफेद और पीले रंग के फूलों और वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि देवी सरस्वती को प्रसाद स्वरूप बूंदी, बेर, चूरमा, चावल का खीर भोग लगाना चाहिए। इस दिन से बसंत का आगमन हो जाता है इसलिए देवी को गुलाब अर्पित करना चाहिए और गुलाल से एक-दूसरे को टीका लगाना चाहिए।
जानिए क्यों की जाती है सरस्वती और कामदेव की पूजा बसन्त पंचमी पर।।
मंत्र, शुभ मुहूर्त और महत्व
किसानों के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व है.
बसंत पंचमी पर सरसों के खेत लहलहा उठते हैं. चना, जौ, ज्वार और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं. इस दिन से बसंत ऋतु का प्रारंभ होता है. यूं तो भारत में छह ऋतुएं होती हैं लेकिन बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. इस दौरान मौसम सुहाना हो जाता है और पेड़-पौधों में नए फल-फूल पल्लवित होने लगते हैं. इस दिन कई जगहों पर पतंगबाजी भी होती है। बसंत ऋतु में मौसम सुहाना हो जाता है और मान्यता है कि कामदेव पूरा माहौल रूमानी कर देते हैं. दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बसंत कामदेव के मित्र हैं, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है. जब कामदेव कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है. इनके बाणों का कोई कवच नहीं है. बसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु माना जाता है. इसमें फूलों के बाणों को खाकर दिल प्रेम से सराबोर हो जाता है. इन कारणों से बसंत पंचमी के दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा की जाती है।
बाली द्वीप में सरस्वती की प्रतिमा--
कहते हैं कि महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती उपासना के सहारे उच्च कोटि के विद्वान् बने थे। इसका सामान्य तात्पर्य तो इतना ही है कि ये लोग अधिक मनोयोग एवं उत्साह के साथ अध्ययन में रुचिपूवर्क संलग्न हो गए और अनुत्साह की मनःस्थिति में प्रसुप्त पड़े रहने वाली मस्तिष्कीय क्षमता को सुविकसित कर सकने में सफल हुए होंगे। इसका एक रहस्य यह भी हो सकता है कि कारणवश दुर्बलता की स्थिति में रह रहे बुद्धि-संस्थान को सजग-सक्षम बनाने के लिए वे उपाय-उपचार किए गए जिन्हें 'सरस्वती आराधना' कहा जाता है। उपासना की प्रक्रिया भाव-विज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग है। श्रद्धा और तन्मयता के समन्वय से की जाने वाली साधना-प्रक्रिया एक विशिष्ट शक्ति है। मनःशास्त्र के रहस्यों को जानने वाले स्वीकार करते हैं कि व्यायाम, अध्ययन, कला, अभ्यास की तरह साधना भी एक समर्थ प्रक्रिया है, जो चेतना क्षेत्र की अनेकानेक रहस्यमयी क्षमताओं को उभारने तथा बढ़ाने में पूणर्तया समर्थ है। सरस्वती उपासना के संबंध में भी यही बात है। उसे शास्त्रीय विधि से किया जाय तो वह अन्य मानसिक उपचारों की तुलना में बौद्धिक क्षमता विकसित करने में कम नहीं, अधिक ही सफल होती है।
मन्त्र जाप के फल -- मन्दबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्त्व अधिक हितकर सिद्घ होता है। बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है। मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द्, तनाव, जुकाम जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश-सरस्वती साधना का लाभ मिलता है। कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निणर्य न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है। उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है।
शिक्षा -- शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूवर्क समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है। बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाय और उसके लिए धन कमाने, बल बढ़ाने, साधन जुटाने, मोद मनाने से भी अधिक ध्यान दिया जाय। इस लोकोपयोगी प्रेरणा को गायत्री महाशक्ति के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण धारा सरस्वती की मानी गयी है और उससे लाभान्वित होने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।
सरस्वती के स्वरूप एवं आसन आदि का संक्षिप्त तात्त्विक विवेचन इस तरह है-
स्वरूप --सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं। मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है। वाहन मयूर-सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। इनका वाहन हंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेद और माला होती है। भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती हैं।
देवी सरस्वती वंदना--
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥
अन्य देशों में सरस्वती -- जापान में सरस्वती को 'बेंजाइतेन' कहते हैं। जापान में उनका चित्रन हाथ में एक संगीत वाद्य लिए हुए किया जाता है। जापान में वे ज्ञान, संगीत तथा 'प्रवाहित होने वाली' वस्तुओं की देवी के रूप में पूजित हैं।
दक्षिण एशिया के अलावा थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, जापान एवं अन्य देशों में भी सरस्वती की पूजा होती है।
अन्य भाषाओ/देशों में सरस्वती के नाम---
बर्मा - थुयथदी (သူရဿတီ=सूरस्सती, उच्चारण: [θùja̰ðədì] या [θùɹa̰ðədì])
बर्मा - तिपिटक मेदा Tipitaka Medaw (တိပိဋကမယ်တော်, उच्चारण: [tḭpḭtəka̰ mɛ̀dɔ̀])
चीन - बियानचाइत्यान Biàncáitiān (辯才天)
जापान - बेंजाइतेन Benzaiten (弁才天/弁財天)
थाईलैण्ड - सुरसवदी Surasawadee (สุรัสวดี)
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