नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं - चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। यह लोकप्रिय धारणा है कि चैत्र नवरात्री के दौरान एक उपवास का पालन करने से शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिए तैयार होता है। चैत्र नवरात्रि हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक बेहद प्रमुख पर्व है। इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं भव्य तरीके से पूजा की जाती है।
नवरात्रि में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ की जाती है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है। कहते है नवरात्रि में माता का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है।
हिंदी के नववर्ष चैत्र मास की प्रतिपदा से शुरू होता है जो इस साल 6 अप्रैल 2019 को है ये पहला नवरात्रा होता है इस दिन से माता की विशेष पूजा शुरू होती है. देश में जगह जगह माता के पंडाल सज जाते है और घर गलियों में सब जगह माता की चौकी और पूजा नजर आती है।यह नवरात्रि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र, 6 अप्रैल 2019 से प्रारंभ है और समापन 15 अप्रैल 2019 को है। नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।
एक वर्ष में चार नवरात्र चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं। इनमें चैत्र और आश्विन नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं। नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं – चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। यह लोकप्रिय धारणा है कि चैत्र नवरात्री के दौरान एक उपवास का पालन करने से शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिए तैयार होता हें।
हिंदू पुराण और ग्रंथों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती थी, रामायण के अनुसार भी भगवान राम ने चैत्र के महीने में देवी दुर्गा की उपासना कर रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारणवश चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में, खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। यह हिंदू त्यौहार हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र राज्य में यह "गुड़ी पड़वा" के साथ शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव "उगादी" से शुरू होता है।
कैसे मनाए चैत्र नवरात्रि 2019---
यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र, 6 अप्रैल से प्रारंभ है और समापन 14 अप्रैल को है । नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है । इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं । इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।
यह रहेगा मुहूर्त--
सूर्योदय-- ६ अप्रैल२०१९--- 06:36 पूर्वाह्न
सूर्यास्त-- ६ अप्रैल २०१९--- 18:33 अपराह्न
प्रतिपदा तिथी आरंभ-- ६ अप्रैल २०१९--- 18:41 अपराह्न
प्रतिपाद तिथी समाप्त- ६ अप्रैल २०१९-- 18:31 अपराह्न
अभिजीत --मुहूर्त 12:11 अपराह्न - 12:59 अपराह्न
घट स्थापना मुहूर्ता--- 06:36 पूर्वाह्न - 10:35
6 अप्रैल (पहला दिन)
प्रतिपदा – इस दिन पर “घटत्पन”, “चंद्र दर्शन” और “शैलपुत्री पूजा” की जाती है।
7 अप्रैल (दूसरा दिन)
दिन पर “सिंधारा दौज” और “माता ब्रह्राचारिणी पूजा” की जाती है।
8 अप्रैल (तीसरा दिन)
यह दिन “गौरी तेज” या “सौजन्य तीज” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “चन्द्रघंटा की पूजा” है।
9 अप्रैल (चौथा दिन)
“वरद विनायक चौथ” के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कूष्मांडा की पूजा” है।
10 अप्रैल (पांचवा दिन)
इस दिन को “लक्ष्मी पंचमी” कहा जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “नाग पूजा” और “स्कंदमाता की पूजा” जाती है।
11 अप्रैल (छटा दिन)
इसे “यमुना छत” या “स्कंद सस्थी” के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कात्यायनी की पूजा” है।
12 अप्रैल (सातवां दिन)
सप्तमी को “महा सप्तमी” के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए “कालरात्रि की पूजा” की जाती है।
13 अप्रैल (आठवां दिन)
अष्टमी को “दुर्गा अष्टमी” के रूप में भी मनाया जाता है और इसे “अन्नपूर्णा अष्टमी” भी कहा जाता है। इस दिन “महागौरी की पूजा” और “संधि पूजा” की जाती है।
14 अप्रैल (नौंवा दिन)
“नवमी” नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन “राम नवमी” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन “सिद्धिंदात्री की पूजा महाशय” की जाती है।
चैत्र नवरात्रि के दौरान अनुष्ठान
बहुत भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं। भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जप करते हुए बिताते हैं।
चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं।
जानिए क्यों करते हैं कलश स्थापना ?
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना करते हैं। हममें से अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित करते हैं ? कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में एक मान्यता है, जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। माँ दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और माँ का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।
क्या लगाए नवरात्रि में नव दिवस भोग (9 दिन के लिए प्रसाद)--
प्रत्येक दिन एक देवी का प्रतिनिधित्व किया जाता है और प्रत्येक देवी को कुछ भेंट करने के साथ भोग चढ़ाया जाता है। सभी नौ दिन देवी के लिए 9 प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं:
1 दिन: केले
2 दिन: देसी घी (गाय के दूध से बने)
3 दिन: नमकीन मक्खन
4 दिन: मिश्री
5 दिन: खीर या दूध
6 दिन: माल पोआ
7 दिन: शहद
8 दिन: गुड़ या नारियल
9 दिन: धान का हलवा
दुर्गा सप्तशती--
दुर्गा सप्तशती शांति, समृद्धि, धन और शांति का प्रतीक है, और नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ को करना, सबसे अधिक शुभ कार्य माना जाता है।
नौ दिनों के लिए नौ रंग--
शुभकामना के लिए और प्रसंता के लिए, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग नौ अलग-अलग रंग पहनते हैं:
1 दिन: हरा
2 दिन: नीला
3 दिन: लाल
4 दिन: नारंगी
5 दिन: पीला
6 दिन: नीला
7 दिन: बैंगनी रंग
8 दिन: गुलाबी
9 दिन: सुनहरा रंग
कन्या पूजन--
कन्या पूजन माँ दुर्गा की प्रतिनिधियों (कन्या) की प्रशंसा करके, उन्हें विदा करने की विधि है। उन्हें फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, घर का भोजन (खासकर: जैसे की हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।
https://www.youtube.com/watch?v=KlHDJhwZtzM&t=54s
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नवरात्रि में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ की जाती है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है। कहते है नवरात्रि में माता का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है।
हिंदी के नववर्ष चैत्र मास की प्रतिपदा से शुरू होता है जो इस साल 6 अप्रैल 2019 को है ये पहला नवरात्रा होता है इस दिन से माता की विशेष पूजा शुरू होती है. देश में जगह जगह माता के पंडाल सज जाते है और घर गलियों में सब जगह माता की चौकी और पूजा नजर आती है।यह नवरात्रि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र, 6 अप्रैल 2019 से प्रारंभ है और समापन 15 अप्रैल 2019 को है। नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।
एक वर्ष में चार नवरात्र चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं। इनमें चैत्र और आश्विन नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं। नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं – चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। यह लोकप्रिय धारणा है कि चैत्र नवरात्री के दौरान एक उपवास का पालन करने से शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिए तैयार होता हें।
हिंदू पुराण और ग्रंथों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती थी, रामायण के अनुसार भी भगवान राम ने चैत्र के महीने में देवी दुर्गा की उपासना कर रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारणवश चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में, खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। यह हिंदू त्यौहार हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र राज्य में यह "गुड़ी पड़वा" के साथ शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव "उगादी" से शुरू होता है।
कैसे मनाए चैत्र नवरात्रि 2019---
यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र, 6 अप्रैल से प्रारंभ है और समापन 14 अप्रैल को है । नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है । इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं । इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।
यह रहेगा मुहूर्त--
सूर्योदय-- ६ अप्रैल२०१९--- 06:36 पूर्वाह्न
सूर्यास्त-- ६ अप्रैल २०१९--- 18:33 अपराह्न
प्रतिपदा तिथी आरंभ-- ६ अप्रैल २०१९--- 18:41 अपराह्न
प्रतिपाद तिथी समाप्त- ६ अप्रैल २०१९-- 18:31 अपराह्न
अभिजीत --मुहूर्त 12:11 अपराह्न - 12:59 अपराह्न
घट स्थापना मुहूर्ता--- 06:36 पूर्वाह्न - 10:35
6 अप्रैल (पहला दिन)
प्रतिपदा – इस दिन पर “घटत्पन”, “चंद्र दर्शन” और “शैलपुत्री पूजा” की जाती है।
7 अप्रैल (दूसरा दिन)
दिन पर “सिंधारा दौज” और “माता ब्रह्राचारिणी पूजा” की जाती है।
8 अप्रैल (तीसरा दिन)
यह दिन “गौरी तेज” या “सौजन्य तीज” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “चन्द्रघंटा की पूजा” है।
9 अप्रैल (चौथा दिन)
“वरद विनायक चौथ” के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कूष्मांडा की पूजा” है।
10 अप्रैल (पांचवा दिन)
इस दिन को “लक्ष्मी पंचमी” कहा जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “नाग पूजा” और “स्कंदमाता की पूजा” जाती है।
11 अप्रैल (छटा दिन)
इसे “यमुना छत” या “स्कंद सस्थी” के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कात्यायनी की पूजा” है।
12 अप्रैल (सातवां दिन)
सप्तमी को “महा सप्तमी” के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए “कालरात्रि की पूजा” की जाती है।
13 अप्रैल (आठवां दिन)
अष्टमी को “दुर्गा अष्टमी” के रूप में भी मनाया जाता है और इसे “अन्नपूर्णा अष्टमी” भी कहा जाता है। इस दिन “महागौरी की पूजा” और “संधि पूजा” की जाती है।
14 अप्रैल (नौंवा दिन)
“नवमी” नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन “राम नवमी” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन “सिद्धिंदात्री की पूजा महाशय” की जाती है।
चैत्र नवरात्रि के दौरान अनुष्ठान
बहुत भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं। भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जप करते हुए बिताते हैं।
चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं।
जानिए क्यों करते हैं कलश स्थापना ?
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना करते हैं। हममें से अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित करते हैं ? कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में एक मान्यता है, जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। माँ दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और माँ का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।
क्या लगाए नवरात्रि में नव दिवस भोग (9 दिन के लिए प्रसाद)--
प्रत्येक दिन एक देवी का प्रतिनिधित्व किया जाता है और प्रत्येक देवी को कुछ भेंट करने के साथ भोग चढ़ाया जाता है। सभी नौ दिन देवी के लिए 9 प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं:
1 दिन: केले
2 दिन: देसी घी (गाय के दूध से बने)
3 दिन: नमकीन मक्खन
4 दिन: मिश्री
5 दिन: खीर या दूध
6 दिन: माल पोआ
7 दिन: शहद
8 दिन: गुड़ या नारियल
9 दिन: धान का हलवा
दुर्गा सप्तशती--
दुर्गा सप्तशती शांति, समृद्धि, धन और शांति का प्रतीक है, और नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ को करना, सबसे अधिक शुभ कार्य माना जाता है।
नौ दिनों के लिए नौ रंग--
शुभकामना के लिए और प्रसंता के लिए, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग नौ अलग-अलग रंग पहनते हैं:
1 दिन: हरा
2 दिन: नीला
3 दिन: लाल
4 दिन: नारंगी
5 दिन: पीला
6 दिन: नीला
7 दिन: बैंगनी रंग
8 दिन: गुलाबी
9 दिन: सुनहरा रंग
कन्या पूजन--
कन्या पूजन माँ दुर्गा की प्रतिनिधियों (कन्या) की प्रशंसा करके, उन्हें विदा करने की विधि है। उन्हें फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, घर का भोजन (खासकर: जैसे की हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।
https://www.youtube.com/watch?v=KlHDJhwZtzM&t=54s
FOR ASTROLOGY www.shubhkundli.com, FOR JOB www.uniqueinstitutes.org