एक संत के पास बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था। उसके कान तो थे पर वे नाडिय़ों से जुड़े नहीं थे। एकदम बहरा, एक शब्द भी नहीं सुन सकता था। किसी ने संत से कहा, ‘‘बाबा जी, वह जो वृद्ध बैठे हैं वह कथा सुनते-सुनते हंसते तो हैं पर हैं बहरे।’’ बाबा जी सोचने लगे, ‘‘बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा। रस नहीं आता होगा तो यहां बैठना भी नहीं चाहिए, उठ कर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है।’ बाबा जी ने उस वृद्ध को बुला लिया। सेवक से कागज-कलम मंगाया और लिख कर पूछा, ‘‘तुम सत्संग में क्यों आते हो ?’’
बहरे ने लिख कर जवाब दिया, ‘‘बाबा जी, सुन तो नहीं सकता हूं लेकिन यह तो समझता हूं कि ईश्वर प्राप्त महापुरुष जब बोलते हैं तो पहले परमात्मा में डुबकी मारते हैं। संसारी आदमी बोलता है तो उसकी वाणी मन व बुद्धि को छूकर आती है, लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत जब बोलते हैं तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर आती है। मैं आपकी अमृतवाणी तो नहीं सुन पाता हूं पर उसके आंदोलन मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं।दूसरी बात आपकी अमृतवाणी सुनने के लिए जो पुण्यात्मा लोग आते हैं, उनके बीच बैठने का पुण्य भी मुझे प्राप्त होता है।’’ बाबा जी ने देखा कि यह तो ऊंची समझ के धनी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आप २ बार हंसना, आपको अधिकार है, किंतु मैं यह जानना चाहता हूं कि आप रोज सत्संग में समय पर पहुंच जाते हैं और आगे बैठते हैं, ऐसा क्यों ?’’
‘‘मैं परिवार में सबसे बड़ा हूं। बड़े जैसा करते हैं वैसा ही छोटे भी करते हैं। मैं सत्संग में आने लगा तो मेरा बड़ा लड़का भी इधर आने लगा। शुरूआत में कभी-कभी मैं बहाना बनाकर उसे ले जाता था। मैं उसे ले आया तो वह अपनी पत्नी को यहां ले आया, पत्नी बच्चों को ले आई। सारा कुटुम्ब सत्संग में आने लगा, कुटुम्ब को संस्कार मिल गए।’’ आप सभी वैष्णवो को नम्र निवेदन है, कि सत्संग में अपना थोडा वक्त दिजीये। आप अपने जीवनमें बदलाव ला सकते हो।
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