एक भिखारी , एक सेठ के घर के बाहर खडा होकर भजन गा रहा था और बदले में खाने को रोटी मांग रहा था | सेठानी काफ़ी देर से उसको कह रही थी , रुको आ रही हूँ| रोटी हाथ मे थी पर फिर भी कह रही थी कि रुको आ रही हूं | भिखारी भजन गा रहा था और रोटी मांग रहा था |
सेठ ये सब देख रहा था , पर समझ नही पा रहा था , आखिर सेठानी से बोला - रोटी हाथ मे लेकर खडी हो, वो बाहर मांग रहा है उसे कह रही हो आ रही हूँ तो उसे रोटी क्यो नहीं दे रही हो ?
सेठानी बोली हाँ रोटी दूंगी, पर क्या है ना कि मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा है, अगर उसको रोटी दूंगी तो वो आगे चला जायेगा , मुझे उसका भजन और सुनना है।
यदि प्रार्थना के बाद भी ईश्वर आपकी नही सुन रहा हैं तो समझना कि उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही है इसलिए इंतज़ार करो और प्रार्थना करते रहो !
(२) एक राजा का जन्मदिन था.
सुबह जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते में मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा.
उसे एक भिखारी मिला.
भिखारी ने राजा से भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया.
सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा.
भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा.
राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया.
भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा.
राजा को लगा कि भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को फिर बुलाया और चांदी का एक सिक्का दिया.
भिखारी राजा की जय जयकार करता चांदी का सिक्का रख लिया और फिर नाली में तांबे वाला सिक्का ढूंढ़ने लगा.
राजा ने फिर बुलाया और अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया.
भिखारी खुशी से झूम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा.
राजा को बहुत खराब लगा.
उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है.
उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूँ अब तो खुश व संतुष्ट हो जाओ...
भिखारी बोला---मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूँगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का भी मुझे मिल जायेगा.
हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है.
हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर पिता ने मानव रूपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है...
इस अनमोल मानव जीवन का हम अगर सही इस्तेमाल करें तो हमारा जीवन धन्य हो जायेगा।.
सेठ ये सब देख रहा था , पर समझ नही पा रहा था , आखिर सेठानी से बोला - रोटी हाथ मे लेकर खडी हो, वो बाहर मांग रहा है उसे कह रही हो आ रही हूँ तो उसे रोटी क्यो नहीं दे रही हो ?
सेठानी बोली हाँ रोटी दूंगी, पर क्या है ना कि मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा है, अगर उसको रोटी दूंगी तो वो आगे चला जायेगा , मुझे उसका भजन और सुनना है।
यदि प्रार्थना के बाद भी ईश्वर आपकी नही सुन रहा हैं तो समझना कि उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही है इसलिए इंतज़ार करो और प्रार्थना करते रहो !
(२) एक राजा का जन्मदिन था.
सुबह जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते में मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा.
उसे एक भिखारी मिला.
भिखारी ने राजा से भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया.
सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा.
भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा.
राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया.
भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा.
राजा को लगा कि भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को फिर बुलाया और चांदी का एक सिक्का दिया.
भिखारी राजा की जय जयकार करता चांदी का सिक्का रख लिया और फिर नाली में तांबे वाला सिक्का ढूंढ़ने लगा.
राजा ने फिर बुलाया और अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया.
भिखारी खुशी से झूम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा.
राजा को बहुत खराब लगा.
उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है.
उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूँ अब तो खुश व संतुष्ट हो जाओ...
भिखारी बोला---मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूँगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का भी मुझे मिल जायेगा.
हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है.
हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर पिता ने मानव रूपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है...
इस अनमोल मानव जीवन का हम अगर सही इस्तेमाल करें तो हमारा जीवन धन्य हो जायेगा।.