पतिव्रता और वैश्या

एक बार एक नदी के किनारे एक पतिव्रता और वैश्या के मध्य अपनी अपनी सच्चाई के लिए वाद विवाद झगडा हो गया / 
वहाँ पर कई ग्रामवासी भी इकट्ठे हो गये और अत्यंत उत्सुकता से उनके संवाद / विवाद को सुनने लगे / 
पतिव्रता ने उत्तेजित होकर कहा की में अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से इस नदी को पैदल ही ( पानी पर चलकर ) पार कर सकती हूँ /
इस बात पर वैश्या ने भी उसी तरह का काम ( नदी पार करने का ) करने की बात कही /

ग्रामवासियों ने दोनों को उनके मुख से कहे वचन चरितार्थ करने को कहा क्योंकि वह सब भी उन दोनों की मनः शक्ति देखना चाहते थे /

सर्व प्रथम पतिव्रता की बारी आने पर उसने दोनों हाँथ जोड़कर ईश्वर का स्मरण किया और मन में सोचा की हे ईश्वर यदि में आजीवन अपने पति की मन वचन और कर्म से सेवा की हो तो निर्बाध रूप से मुझे ये नदी पैदल चल कर पार करवाएं .... ऐसा कह कर वह एक बार में नदी के ऊपर चल कर उसे पार कर गई /

वैश्या की बारी आने पर उसने आँख बंद कर ईश्वर का स्मरण किया और मन में कहा / हे ईश्वर यदि आज तक मैने कभी भी किसी भी व्यक्ति को तो क्या श्वान ( कुत्ते ) को भी सुख देने से मना किया हो तो तो इसी नदी में डुबोकर मेरे प्राण हर लीजिए / मुझे मार डालिए / और ऐसा मन में कहकर वह वेश्या भी सकुशल वैतरणी पार कर गयी /

भोले भाले ग्राम वासी अचंभित होते हुए अपने अपने घर को प्रस्थान कर गए /

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