जिस समय जो स्वर चलता है उस समय तुम्हारे शरीर में उसी स्वर का प्रभाव होता है। हमारे ऋषियों ने इस विषय बहुत सुंदर खोज की है।
दायें नथुने से चलने वाला श्वास दायाँ स्वर एवं बायें नथुने से चलने वाला श्वास बायाँ स्वर कहलाता है, जिसका ज्ञान नथुने पर हाथ रखकर सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। जिस समय जिस नथुने से श्वासोच्छ्वास अधिक गति से चल रहा हो, उस समय वह या नथुना चालू है ऐसा कहा जाता है।
जब सूर्य नाड़ी अर्थात् दायाँ स्वर (नथुना) चलता हो तब भोजन करने से जल्दी पच जाता है लेकिन पेय पदार्थ पीना हो तब चन्द्र नाड़ी अर्थात् बायाँ स्वर चलना चाहिए। यदि पेय पदार्थ पीते समय बायाँ स्वर न चलता हो तो दायें नथुने को उँगली से दबा दें ताकि बायाँ स्वर चलने लगे। भोजन या कोई भी खाद्य पदार्थ सेवन करते समय पिंगला नाड़ी अर्थात् सूर्य स्वर चालू न हो तो थोड़ी देर बायीं करवट लेटकर या कपड़े की छोटी पोटली बायीं काँख में दबाकर यह स्वर चालू किया जा सकता है। इससे स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा बीमारी जल्दी नहीं आती।
सुबह उठते समय ध्यान रखें कि जो स्वर चलता हो उसी ओर का हाथ मुँह पर घुमाना चाहिए तथा उसी ओर का पैर पहले पृथ्वी पर रखना चाहिए। ऐसा करने से अपने कार्यों में सफलता मिलती है ऐसा कहा गया है।
दायाँ स्वर चलते समय मलत्याग करने से एवं बायाँ स्वर चलते समय मूत्रत्याग करने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है। वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके देखा कि इससे विपरीत करने पर विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं।
प्रकृति ने एक साल तक के शिशु के स्वर पर अपना नियंत्रण रखा है। शिशु जब पेशाब करता है तब उसका बायाँ स्वर चलता है और मलत्याग करता है तब उसका दायाँ स्वर चलता है।
लघुशंका बैठकर ही करनी चाहिए क्योंकि खड़े-खड़े पेशाब करने से धातु क्षीण होती है और बच्चे भी कमजोर पैदा होते हैं।
कुछ लोग मुँह से श्वास लेते हैं। इससे श्वासनली और फेफड़ों में बीमारी के कीटाणु घुस जाते हैं एवं तकलीफ सहनी पड़ती है। अतः श्वास सदैव नाक से ही लेना चाहिए।
कोई खास काम करने जायें उस वक्त जो भी स्वर चलता हो वही पैर आगे रखकर जाने से विघ्न दूर होने में मदद मिलती है। इस प्रकार स्वर का भी एक अपना विज्ञान है जिसे जानकर एवं छोटी-छोटी सावधानियाँ अपना कर मनुष्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा एवं व्यावहारिक जीवन में भी सफलता प्राप्त कर सकता है।
जब सूर्य नाड़ी अर्थात् दायाँ स्वर (नथुना) चलता हो तब भोजन करने से जल्दी पच जाता है लेकिन पेय पदार्थ पीना हो तब चन्द्र नाड़ी अर्थात् बायाँ स्वर चलना चाहिए। यदि पेय पदार्थ पीते समय बायाँ स्वर न चलता हो तो दायें नथुने को उँगली से दबा दें ताकि बायाँ स्वर चलने लगे। भोजन या कोई भी खाद्य पदार्थ सेवन करते समय पिंगला नाड़ी अर्थात् सूर्य स्वर चालू न हो तो थोड़ी देर बायीं करवट लेटकर या कपड़े की छोटी पोटली बायीं काँख में दबाकर यह स्वर चालू किया जा सकता है। इससे स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा बीमारी जल्दी नहीं आती।
सुबह उठते समय ध्यान रखें कि जो स्वर चलता हो उसी ओर का हाथ मुँह पर घुमाना चाहिए तथा उसी ओर का पैर पहले पृथ्वी पर रखना चाहिए। ऐसा करने से अपने कार्यों में सफलता मिलती है ऐसा कहा गया है।
दायाँ स्वर चलते समय मलत्याग करने से एवं बायाँ स्वर चलते समय मूत्रत्याग करने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है। वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके देखा कि इससे विपरीत करने पर विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं।
प्रकृति ने एक साल तक के शिशु के स्वर पर अपना नियंत्रण रखा है। शिशु जब पेशाब करता है तब उसका बायाँ स्वर चलता है और मलत्याग करता है तब उसका दायाँ स्वर चलता है।
लघुशंका बैठकर ही करनी चाहिए क्योंकि खड़े-खड़े पेशाब करने से धातु क्षीण होती है और बच्चे भी कमजोर पैदा होते हैं।
कुछ लोग मुँह से श्वास लेते हैं। इससे श्वासनली और फेफड़ों में बीमारी के कीटाणु घुस जाते हैं एवं तकलीफ सहनी पड़ती है। अतः श्वास सदैव नाक से ही लेना चाहिए।
कोई खास काम करने जायें उस वक्त जो भी स्वर चलता हो वही पैर आगे रखकर जाने से विघ्न दूर होने में मदद मिलती है। इस प्रकार स्वर का भी एक अपना विज्ञान है जिसे जानकर एवं छोटी-छोटी सावधानियाँ अपना कर मनुष्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा एवं व्यावहारिक जीवन में भी सफलता प्राप्त कर सकता है।
courtesy : swadeshi aapnaye desh baachaye, save country