दो टैडपोल एक कुएं में बड़ी मस्ती से घूम रहे थे। दोनों अपनी पूंछ हिलाते और बाकी मेंढकों को अपना खेल दिखाते। उनकी शैतानियाँ देखकर एक वयस्क मेंढक बोला, “जितनी पूंछ हिलानी है हिला लो, कुछ दिन बाद ये गायब हो जायेगी।”“हा-हा-हा…”, ये सुनकर बाकी मेंढक हंसने लगे।दोनों टैडपोल फ़ौरन अपनी माँ के पास गए और उस मेंढक की बात बताते हुए बोले, “माँ, क्या सचमुच हमारी पूंछ गायब हो जायेगी?”“हाँ!”, माँ बोली, “यही प्रकृति का नियम है, जब हम पैदा होते हैं तो हमारी छोटी सी पूंछ होती है पर समय के साथ हम विकसित हो जाते हैं, ये पूंछ गायब हो जाती है और हमारे पैर निकल आते हैं, तब हम कुएं के बाहर भी जा सकते हैं, लम्बी छलांगे मार सकते हैं और स्वादिष्ट कीड़े-मकौड़े खा सकते हैं।”माँ की बात सुनकर पहले टैडपोल ने मन ही मन सोचा, “इससे पहले की पूंछ गायब हो मैं और मस्ती कर लेता हूँ, तालाब के कई चक्कर लगा लेता हूँ और एक से बढ़कर एक करतब दिखाता हूँ…”
और ऐसा सोच कर वह दुबारा मस्ती से घुमने लगा।वहीँ दुसरे टैडपोल ने सोचा, “जब ये पूंछ एक दिन गायब ही हो जानी है तो इससे खेलने और मौज-मस्ती करने से क्या फायदा, जब पैर निकलेंगे तब मौज की जायेगी।”, और वह कुएं के एक हिस्से में गुमसुम सा रहने लगा।
फिर एक दिन वो भी आया जब दोनों टैडपोल मेंढक में विकसित हो गए।
दोनों काफी खुश थे और फैसला किया कि वे तालाब से निकल कर बागीचे में सैर करने जायेंगे।
पहला मेंढक किनारे पे पहुंचा और तेजी से छलांग लगा कर बाहर निकल गया। वहीँ दुसरा मेंढक छलांग लगाने की कोशिश करता पर लगा ही नहीं पाता…मानो उसके पैरों में जान ही ना हो!
वह घबराया हुआ वापस अपनी माँ के पास पहुंचा और घबराते हुए बोला, “मेरे पैर काम क्यों नहीं कर रहे…मेरा भाई तो बड़े आराम से छलांग लगा कर बाहर निकल गया पर मैं ऐसा क्यों नहीं कर पा रहा ?”
माँ बोली, “बेटे, ये तुम्हारी वजह से ही हुआ है, तुमने ये सोचकर की एक दिन पूंछ चली ही जानी है उसका इस्तेमाल ही बंद कर दिया और चुप चाप कोने में पड़े रहने लगे….मेरे समझाने पर भी तुम नहीं माने और इसी वजह से तुमहरा शरीर कमजोर हो गया, जिन अंगो का विकास ठीक से होना चाहिए था वो नहीं हो पाया और अब जिन पैरों का तुम इतने दिनों से इंतज़ार कर रहे थे वे भी बेकार निकल गए….मुझे अफोस है पर अब तुम्हे अपनी पूरी ज़िन्दगी कुएं का मेंढक बन कर ही बितानी होगी!
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