मुल्ला नसरुद्दीन एक नवाब के यहां नौकरी करता था। दोनों एक दिन भोजन पर बैठे। नवाब प्रेम करता है नसरुद्दीन को। चमचों को कौन प्रेम नहीं करता! भिंडी की सब्जी बनी, नई-नई भिंडियां आई थीं। नवाब ने कहा, सुंदर है, स्वादिष्ट है। नसरुद्दीन पीछे रहता! ऐसे मौकों की तलाश में चमचे रहते हैं। नसरुद्दीन ने कहा, स्वादिष्ट! अरे वनस्पति-शास्त्र के हिसाब से यह अमृत है। जो भिंडी की सब्जी खाता है, हजार बरस जीता है। और उसके एक-एक बरस में हजार दिन होते हैं। भिंडी की सब्जी, जैसे आप सम्राटों के सम्राट ऐसे भिंडी भी सब्जियों की सम्राट है।
रसोइए ने भी यह बात सुनी, जब ऐसे गुण हैं भिंडी के, अमृत जैसे, तो उसने दूसरे दिन भी भिंडी बनाई, तीसरे दिन भी भिंडी बनाई, वह रोज ही भिंडी बनाने लगा। सातवें दिन नवाब ने थाली फेंक दी। उसने कहा, भिंडी-भिंडी-भिंडी! मार डालेगा?
नसरुद्दीन ने अपनी थाली और जोर से फेंकी और उठ कर एक चपत लगा दी उस रसोइए को कि तू मालिक को मारना चाहता है दुष्ट? भिंडी जैसी सड़ीसड़ाई चीज भिखमंगे भी नहीं खाते! नाम देख–भिंडी! जहर है जहर! तू दुश्मनों के हाथ में खेल रहा है, किसी षडयंत्र में भागीदार है।
नवाब ने कहा, नसरुद्दीन, जहां तक मुझे याद आता है, सात दिन पहले तुमने कहा था भिंडी अमृत है।
नसरुद्दीन ने कहा, मालिक, बिलकुल ठीक याद आता है।
तो नवाब ने कहा, मैं समझा नहीं, आज एकदम तुम जहर कहने लगे और बेचारे रसोइए को मार भी दिया और तुमने थाली मुझसे भी जोर से फेंकी!
नसरुद्दीन ने कहा, मालिक, हम कोई भिंडी के नौकर नहीं, हम तो आपके नौकर हैं। भिंडी की ऐसी की तैसी! भिंडी जाए भाड़ में! जब आपने थाली फेंकी, हमने और जोर से फेंकी। जब आपने प्रशंसा की, हमने प्रशंसा के पुल बांध दिए। हम तो नौकर आपके हैं। तनख्वाह हमें आपसे मिलती है, भिंडी से नहीं। आप दिन को रात कहो, हम रात कहें। आप रात को दिन कहो, हम दिन कहें। हम तो मालिक के वफादार हैं।
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