महामृत्युंजय

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पौराणिक काल में एक राज्य था दर्शाण. यह आजकल के मध्य प्रदेश के उत्तर पूर्व में स्थित था. यहां वज्रबाहु नाम का राजा राज करता था जो अपनी कई पत्नियों में रानी सुमति को सबसे ज्यादा प्यार करता था इससे सभी रानियां जलती थी.
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सुमति गर्भवती थी. सौतनों ने उसे ज़हर दे दिया. ज़हर से सुमति मरी नहीं न ही गर्भ में पल रहा बच्चा मरा. हां, इसका असर यह हुआ कि पहले तो सुमति की देह पर भायनक फोड़े निकल आए फिर जो बालक पैदा हुआ उसका शरीर भी फफोलों और घावों से भरा था.
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बहुत इलाज कराया पर मां बेटे पर कोई असर न हुआ. रानियों ने राजा के कान भर दिए कि यह एक संक्रामक बीमारी बन सकती है और इससे प्रजा का अहित होगा. इससे पहले कि बात खुले राजा ने सुमति को बच्चे के साथ जंगल में छुड़वा दिया.
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रानी सुमति अपने बेटे को लेकर किसी तरह जंगल से बाहर निकली तो उसे एक औरत मिली जो पास के ही शहर के महाजन की दासी थी. वह उसे वहां ले गयी. नगर रक्षक पद्माकर ने वैद्य बुलाए इलाज कराया पर कोई लाभ न हुआ. सुमति की हालत खराब थी, उसका नवजात बेटा यह रोग न झेल सका और चल बसा. 
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यह देख सुमति बेहोश हो गयी. होश आया तो वह रोते रोते भगवान शिव से प्रार्थना करने लगी कि अब आपके सिवा मेरा कोई नहीं है, साथ ही वह महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगी.
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महादेव ने उसकी पुकार सुन ली. एक नामी शिवयोगी ऋषभ वहां प्रकट हो गये और सुमति से बोले, बेटी तुम इतना विलाप क्यों कर रही हो. काल से कौन बचा है, यह शरीर तो एक बुलबुला है जो फिर महासमुद्र के पानी में मिल गया. अपना जीवन देखो.
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सुमति बोली- भगवन् ! जिसका एकलौता बेटा मर गया हो, जिसका कोई घरबार, रिश्तेदार न हो, जो न ठीक होने वाले रोग से पीडित हो उस अभागिन के लिये मौत से बेहतर क्या है ? इसलिये मैं बेटे के साथ ही मरना चाहती हूँ !
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शिवकृपा से आपके दर्शन हो गए यही इस जीवन का सुफल मानूंगी. वह शिवयोगी रानी सुमति के उत्तर से बड़े खुश हुए और बोले- देवी तुम महामृत्युंजय मंत्र का जाप आरंभ करो.
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शिवयोगी ने खुद भस्म लेकर उसपर मंत्र पढा और थोड़ा सा मरे हुये बालक के मुंह में डाला और बाकी उसके और सुमति के शरीर पर. बालक जीवित हो उठा. बालक और सुमति के सारे फोड़े, घाव दूर हो गये. देह चमकने लगी.
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शिवयोगी ने कहा, बेटी तुम जीवन भर ऐसी ही युवा रहोगी. अपने बेटे का नाम भद्रायु रखो यह बड़ा होकर नामी विद्वान बनेगा, वीर भी होगा और अपना खोया राज्य भी वापस पा लेगा. मन को महादेव के ध्यान में लगाओ.
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सुमति और भद्रायु दोनों शिव अर्चना और मृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे. सोलह साल बीत गये. अब भद्रायु पढ लिखकर एक सुंदर युवक बनने की ओर था तभी शिव योगी ऋषभ एक बार फिर वहां आये. भद्रायु उनकी चरणों में लोट गया.
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उन्होंने भद्रायु को न केवल आशीर्वाद बल्कि तरह तरह की शिक्षाएं भी दीं. शिव योगी ऋषभ ने कहा, भद्रायु जल्द ही तुम अपना वह राज्य हासिल करोगे जिस पर तुम्हारा अधिकार है.
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उन्होंने भद्रायु को एक शंख तथा एक खड्ग दिया. दोनों ही दिव्य थे जिन्हें सुन और देख कर बैरी भाग जाते. फिर मंत्र पढ कर भद्रायु के शरीर में भस्म लगायी जिससे उसमें बारह हजार हाथियों का बल आ गया.
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शिवयोगी ऋषभ के जाने के बाद पता चला कि वज्रबाहु के दुश्मनों ने उनकी सारी रानियों का अपहरण कर लिया और उन्हें कैद. समाचार सुन क्रोधित भद्रायु शेर की तरह गरजा. हालांकि यह उनको अपनी निर्दोष पत्नी और अबोध बालक को व्यर्थ कष्ट पहुंचाने की ही सज़ा थी.
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भद्रायु ने अपने पिता के शत्रुओं पर आक्रमण कर उन्हें मार डाला और पिता को छुड़ा लिया. उनको उनका राज्य वापस मिल गया. इस कारनामे से भद्रायु का यश चारों और फैल गया. वज्रबाहु अपने बेटे से मिलकर खुश और पत्नी सुमति से मिल कर बहुत लज्जित हुए.
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निषाधराज चित्रांगद और सीमन्तिनी ने अपनी कन्या कीर्तिमालिनी का विवाह भद्रायु के साथ कर दिया. वज्रबाहु ने वीर विद्वान शिव भक्त बेटे के लिये राजगद्दी खाली कर दी. भद्रायु ने हजारों साल राज करते हुए शिव पूजन और महामृत्युंजय का जाप जारी रखा और अंत में शिवस्वरूप होकर शिवलोक को गए. 
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भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र को शुद्ध-शुद्ध पढा जाए तो मौत भी भाग जाती है, जीवन सफल हो जाता है और जीवन के बाद की राह भी आसान और सुखद हो जाती है.


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