ब्राम्हण भगवान

एक ब्राम्हण था, भगबान राम के
मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था।
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उसकी पत्नी इस बात से
हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात
में वह पहले भगवान को लाता।
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भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज
पहले भगवान को समर्पित करता।
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एक दिन घर में लड्डू बने।
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ब्राम्हण ने लड्डू लिए
और भोग लगाने चल दिया।
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पत्नी इससे नाराज हो गई,
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कहने लगी कोई पत्थर की
मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं
जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ
दौड़ पड़ते हो।
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अबकी बार बिना खिलाए न
लौटना, देखती हूं कैसे भगवान
खाने आते हैं।
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बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के
ताने सुनकर ठान ली कि बिना
भगवान को खिलाए आज मंदिर
से लौटना नहीं है।
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मंदिर में जाकर धूनि लगा ली।
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भगवान के सामने लड्डू रखकर
विनती करने लगा।
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एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता,
न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा।
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आसपास देखने वालों
की भीड़ लग गई।
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सभी कौतुकवश देखने
लगे कि आखिर होना क्या है।
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मक्खियां भिनभिनाने लगी
ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।
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मीठे की गंध से चीटियां
भी लाईन लगाकर चली आईं।
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ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया,
फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा
कुत्ते भी ललचाकर आने लगे।
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ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।
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लड्डू पड़े देख मंदिर के
बाहर बैठे भिखारी भी आए गए।
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एक तो चला सीधे
लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने
जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।
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दिन ढल गया, शाम हो गई।
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न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।
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शाम से रात हो गई।
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लोगों ने सोचा
ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं,
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भगवान तो आने से रहे।
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धीरे-धीरे सब घर चले गए।
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ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया।
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लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।
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भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी
तो दिनभर से ही इस घड़ी का
इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े।
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उदास ब्राम्हण भगवान को
कोसता हुआ घर लौटने लगा।
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इतने सालों की सेवा बेकार
चली गई।कोई फल नहीं मिला।
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ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया।
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रात को सपने में भगवान आए।
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बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने।
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बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह
ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा
होता।
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कितने रूप धरने पड़े
तेरे लड्डू खाने के लिए।
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मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी।
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पर तुने हाथ नहीं धरने दिया।
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दिनभर इंतजार करना पड़ा।
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आखिर में लड्डू खाए
लेकिन जमीन से उठाकर
खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी।
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अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना।
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भगवान चले गए।
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ब्राम्हण की नींद खुल गई।
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उसे एहसास हो गया।
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भगवान तो आए थे खाने
लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।
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बस, ऐसे ही हम भी भगवान
के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं

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