एक साधु के दो भक्त थे दोनों ही काफी समय से साधु की शरण में जाते थे पर एक बहुत गरीब था और दूसरा काफी अमीर था, दोनों साधु के प्रवचन सुनने जरूर जाया करते थे साधु महाराज हमेशा अपने प्रवचनों में फरमाया करते की इंसान को जो भी सुख और दुःख मिलते है वह उसके पिछले कर्मो का और वर्तमान कर्मो का फल होता है परन्तु अगर कोई भगवान की शरण में आता है तो उसके बुरे कर्म भी कम हो जाते है और उसका फल उसको कम दुःख मिलते है
गरीब भकत साधु के प्रवचनों पर अमल करता परतुं उसकी दशा वैसी की वैसी ही रहती वह जो कोई भी काम करता उसको न तो लाभ होता और न ही नुक्सान बस उसका गुजारा ही होता उधर अमीर भकत जो कुछ भी करता उसको लाभ ही लाभ होता और जब भी वह साधु के पास जाता काफी कुछ साधु के चरणो में रखता यह सब गरीब भकत देखता रहता और मन ही मन सोचता की मैने ऐसे कौन से कर्म किये है जो मेरा काम धंधा नहीं चलता
एक दिन उसने साधु से पूछ ही लिया की महाराज में भी आपकी शरण मैं आता हू और काफी सालों से आ रहा हूँ परन्तु मेरा काम नहीं चलता मेरे ऐसे कौन से कर्म है जो मुझे अमीर बनने से रोक रहे है तो साधु महाराज ने अंतर्ध्यान हो कर कहा सुनो तुम्हारे पिछले कर्म बहुत अच्छे थे लेकिन वर्तमान कर्म बहुत बुरे है इसलिए तुम्हारा काम नहीं चलता
तुम्हारे पिछले कर्म ही तुमको दुखो से बचा रहे है और तुम्हारे वर्तमान कर्म तुम्हारे को दुखो की तरफ ले कर जा रहे है साधु महाराज ने कहा तुम बहुत आलसी हो तुमने जो काम करना होता है वो तुम कल पर छोड़ देते हो और कल कल करते तुम सारा समय ऐसे ही निकाल देते हो दूसरा जब तुम्हारा काम चलने लगता है तुम लोगो की बातों में आ जाते हो और कोई नए काम में अपना भविषय देखने लगते इन कारणों से तुम्हारा काम नहीं चलता
साधु महाराज ने आगे उसको कहा तुम सत्संग में आते हो इसी वजह से तुम्हारा काम चल रहा है और तुम्हे पिछले कर्मो का फल मिल रहा है और तुम यह सोचते हो की जब प्रभु देगा तो मैं दान करुँगा प्रभु भी तब ही देते है जब तुम उसके बन्दों को कुछ न कुछ देते हो जिस तरह तुम प्रभु के देने पर निर्भर हो उसी प्रकार एक जरुरत मंद इंसान भी तुम्हारे पर निर्भर होता है पहले कुछ देना सीखो फिर लेने की आस रखो चाहे वह माया की हो या आशीर्वाद की, फिर साधु महाराज ने उसको कहा की अपने अंदर बैठी हीन भावना को भी निकाल बाहर करो
साधु महाराज ने कहा हमें मालूम है की तुमने यह प्रशन कियो किया तुमने उस भगत को देख कर किया जो जब भी आता है बहुत कुछ भगवान के चरणो में भेंट कर जाता है तो सुनो उसके पिछले कर्म बहुत बुरे थे और वर्तमान कर्म उसके बहुत ही अच्छे है पिछले कर्मो का दुःख उसने बचपन में ही भुगत लिया बचपन में उसको जितने दुःख मिले पर उसने प्रभु का नाम लेना नहीं छोड़ा. उसने दुःख को प्रभु का नाम ले कर सह लिया और काम करता रहा जिसका फल उसको वर्तमान में मिल रहा है
साधु महाराज ने आगे उसको कहा की वो शुरू से एक ही काम पर ध्यान दे रहा है और उसमे उसने कुशलता प्रापत कर ली है उसको जो भी काम में बचता है उसका पहला भाग प्रभु को समर्पित करता है
साधु महाराज ने अंत में उसको कहा जीवन में सफलता प्रापत करनी है तो पहले तो आलस को तयागो, हीन भावना छोड़ो, काम पर ध्यान दो, लोगो की बातों में न आयो, प्रभु सिमरन और उसके बन्दों की सेवा करो
गरीब भकत साधु के प्रवचनों पर अमल करता परतुं उसकी दशा वैसी की वैसी ही रहती वह जो कोई भी काम करता उसको न तो लाभ होता और न ही नुक्सान बस उसका गुजारा ही होता उधर अमीर भकत जो कुछ भी करता उसको लाभ ही लाभ होता और जब भी वह साधु के पास जाता काफी कुछ साधु के चरणो में रखता यह सब गरीब भकत देखता रहता और मन ही मन सोचता की मैने ऐसे कौन से कर्म किये है जो मेरा काम धंधा नहीं चलता
एक दिन उसने साधु से पूछ ही लिया की महाराज में भी आपकी शरण मैं आता हू और काफी सालों से आ रहा हूँ परन्तु मेरा काम नहीं चलता मेरे ऐसे कौन से कर्म है जो मुझे अमीर बनने से रोक रहे है तो साधु महाराज ने अंतर्ध्यान हो कर कहा सुनो तुम्हारे पिछले कर्म बहुत अच्छे थे लेकिन वर्तमान कर्म बहुत बुरे है इसलिए तुम्हारा काम नहीं चलता
तुम्हारे पिछले कर्म ही तुमको दुखो से बचा रहे है और तुम्हारे वर्तमान कर्म तुम्हारे को दुखो की तरफ ले कर जा रहे है साधु महाराज ने कहा तुम बहुत आलसी हो तुमने जो काम करना होता है वो तुम कल पर छोड़ देते हो और कल कल करते तुम सारा समय ऐसे ही निकाल देते हो दूसरा जब तुम्हारा काम चलने लगता है तुम लोगो की बातों में आ जाते हो और कोई नए काम में अपना भविषय देखने लगते इन कारणों से तुम्हारा काम नहीं चलता
साधु महाराज ने आगे उसको कहा तुम सत्संग में आते हो इसी वजह से तुम्हारा काम चल रहा है और तुम्हे पिछले कर्मो का फल मिल रहा है और तुम यह सोचते हो की जब प्रभु देगा तो मैं दान करुँगा प्रभु भी तब ही देते है जब तुम उसके बन्दों को कुछ न कुछ देते हो जिस तरह तुम प्रभु के देने पर निर्भर हो उसी प्रकार एक जरुरत मंद इंसान भी तुम्हारे पर निर्भर होता है पहले कुछ देना सीखो फिर लेने की आस रखो चाहे वह माया की हो या आशीर्वाद की, फिर साधु महाराज ने उसको कहा की अपने अंदर बैठी हीन भावना को भी निकाल बाहर करो
साधु महाराज ने कहा हमें मालूम है की तुमने यह प्रशन कियो किया तुमने उस भगत को देख कर किया जो जब भी आता है बहुत कुछ भगवान के चरणो में भेंट कर जाता है तो सुनो उसके पिछले कर्म बहुत बुरे थे और वर्तमान कर्म उसके बहुत ही अच्छे है पिछले कर्मो का दुःख उसने बचपन में ही भुगत लिया बचपन में उसको जितने दुःख मिले पर उसने प्रभु का नाम लेना नहीं छोड़ा. उसने दुःख को प्रभु का नाम ले कर सह लिया और काम करता रहा जिसका फल उसको वर्तमान में मिल रहा है
साधु महाराज ने आगे उसको कहा की वो शुरू से एक ही काम पर ध्यान दे रहा है और उसमे उसने कुशलता प्रापत कर ली है उसको जो भी काम में बचता है उसका पहला भाग प्रभु को समर्पित करता है
साधु महाराज ने अंत में उसको कहा जीवन में सफलता प्रापत करनी है तो पहले तो आलस को तयागो, हीन भावना छोड़ो, काम पर ध्यान दो, लोगो की बातों में न आयो, प्रभु सिमरन और उसके बन्दों की सेवा करो