क्षमा और दया मार्ग



एक बार एक राजा घने जंगल में भटक रहा था । राजा को
बहुत जोर से प्यास लगी थी । इधर-उधर हर जगह तलाश करने
पर भी उसे कहीं पानी दिखाई नहीं दे पा रहा था । प्यास से
उसका गला सुखा जा रहा था । तभी उसकी नजर एक वृक्ष पर
पड़ी, जहाँ एक डाली से टप-टप करती थोड़ी-थोड़ी पानी की बूंदें
गिर रहीं थीं ।
🔶 राजा ने उस वृक्ष के पास जाकर नीचे पड़े पत्तों का दोना
बनाया और उन बूंदों से दोने को भरने लगा । काफी समय लगने
पर वह दोना भर गया । राजा ने प्रसन्न होते हुए जैसे ही उस
पानी को पीने के लिए दोने को मुँह के पास ऊँचा किया, तभी
वहाँ सामने बैठा हुआ एक तोता टेंटें की आवाज करता हुआ आया
और उस दोने को झपट्टा मारकर वापिस सामने की ओर बैठ
गया । उस दोने का पूरा पानी नीचे गिर गया ।
🔶 राजा निराश हुआ कि बड़ी मुश्किल से पानी नसीब हुआ था
और वो भी इस पक्षी ने गिरा दिया । लेकिन अब क्या हो
सकता है । ऐसा सोचकर वह फिर से उस खाली दोने को भरने
लगा । काफी मशक्कत के बाद वह दोना फिर भर गया । राजा
ने पुनः हर्षचित्त होकर जैसे ही उस पानी को पीने के लिए दोने
को उठाया तो वही सामने बैठा तोता टेंटें करता हुआ आया और
दोने को झपट्टा मारकर नीचे गिरा के वापिस सामने बैठ गया ।
🔶 अब राजा हताशा के वशीभूत हो क्रोधित हो उठा - "मुझे
जोर से प्यास लगी है । मैं इतनी मेहनत से पानी इकट्ठा कर
रहा हूँ और यह दुष्ट पक्षी मेरी सारी मेहनत को आकर गिरा
देता है । मैं इसे नहीं छोड़ूंगा । अब की बार जब यह वापिस
आएगा तो इसे खत्म कर दूँगा ।"
🔶 इस प्रकार वह राजा अपने हाथ में चाबुक लेकर वापिस उस
दोने को भरने लगा । काफी समय बाद उस दोने में पानी भर
गया । राजा ने पीने के लिए जैसे ही उस दोने को ऊँचा किया तो
वह तोता पुनः टेंटें करता हुआ उस दोने को झपट्टा मारने पास
आया, वैसे ही राजा ने अपने चाबुक को तोते के ऊपर दे मारा
और उस तोते के वहीं प्राण पखेरु उड़ गए ।
🔶 राजा ने सोचा - "इस तोते से तो पीछा छूट गया । लेकिन
ऐसे बूंद-बूंद से कब तक दोना भरुँगा और कब अपनी प्यास बुझा
पाऊँगा, इसलिए जहाँ से यह पानी टपक रहा है, क्यों ना वहीं
जाकर झट से पानी भर लूँ ।" ऐसा सोचकर वह राजा उस डाली
के पास पहुँच गया, जहाँ से पानी टपक रहा था । वहाँ जाकर
जब राजा ने देखा तो उसके पाँवों के नीचे की जमीन खिसक गयी

🔶 क्योंकि उस डाली पर एक भयंकर अजगर सोया हुआ था
और उस अजगर के मुँह से लार टपक रही थी । राजा जिसको
पानी समझ रहा था, वह अजगर की ज़हरीली लार थी । राजा के
मन में पश्चाताप का समन्द्र उठने लगा ।
🔶 "हे प्रभु ! मैंने यह क्या कर दिया ? जो पक्षी बार-बार
मुझे ज़हर पीने से बचा रहा था, क्रोध के वशीभूत होकर मैंने उसे
ही मार दिया । काश ! मैंने सन्तों के बताये उत्तम 'क्षमा मार्ग'
को धारण किया होता । अपने क्रोध पर नियन्त्रण किया होता
तो यह मेरा हितैषी निर्दोष पक्षी इसकी जान नहीं जाती । हे
भगवान ! मैंने अज्ञानता में कितना बड़ा पाप कर दिया ? हाय !
यह मेरे द्वारा क्या हो गया ?" ऐसे घोर पाश्चाताप से प्रेरित
हो वह राजा दु:खी हो उठा ।
🔶 सन्त कहते हैं कि क्षमा और दया धारण करने वाला सच्चा
वीर होता है । क्रोध में व्यक्ति दुसरों के साथ-साथ अपना खुद
का भी बहुत नुकसान कर लेता है । क्रोध वह ज़हर है, जिसकी
उत्पत्ति अज्ञानता से होती है और अन्त पाश्चाताप से होता है
। इसलिए जितना भी हो सके हमेशा क्रोध पर नियन्त्रण रखना
चाहिये और क्रोध में आकर कभी कोई फैंसला नहीं लेना चाहिय ।।


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