अवधूत


एक अवधूत बहुत दिनों से नदी के किनारे बैठे थे.......

एक दिन किसी व्यक्ति ने उनसे पुछा.......

आप नदी के किनारे बैठे-बैठे क्या कर रहे है.......?

अवधूत ने कहाँ, इस नदी का जल पूरा का पूरा बह जाए इसका इंतजार कर रहा हूँ......
व्यक्ति ने कहाँ, यह कैसे हो सकता है........?

नदी तो बहती हीं रहती हैं, सारा पानी अगर बह भी जाए तो, आपको क्या करना.......?

अवधूत ने कहाँ, मुझे दुसरे पार जाना है.........

सारा जल बह जाए, तो मै चल कर उस पार जाऊगा.........

उस व्यक्ति ने गुस्से में कहाँ, आप पागल नासमझ जैसी बात कर रहे है,

ऐसा तो हो ही नही सकता.........

तब अवधूत ने मुस्कराते हुए कहाँ.........

यह काम तुम लोगों को देख कर ही सीखा है.......

तुम लोग हमेशा सोचते रहते हो की..........
जीवन मे थोड़ी बाधाएं कम हो जाये,
कुछ शांति मिले,
फलाना काम खत्म हो जाए,

तो सेवा, साधन -भजन, सत्कार्य करेगें.........

जीवन भी तो नदी के समान है यदि जीवन मे तुम यह आशा
लगाए बैठे हो.........

तो मैं इस नदी के पानी के पूरे बह जाने का इंतजार क्यों न करू..........?



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