सफोला का सत्य ...........
क्या कारण है की एन्जीओप्लासटी करने के बाद भी खून की नलियाँ फिर से बंद हो जाती है .ओपरेशन करवाने के बावजूद मरीज़ की मृत्यु हो जाती है ? अगर शरीर में वात है अर्थात हवा ज़्यादा घुस गयी तो हवा सुखाने का काम करती है . खून की नलियों में भी यही हवा घुस कर सूखापन लाती है . चिकनाहट कम हो जाने से नलियों की दीवारों पर कुछ ना कुछ चिपकने लगता है .
वायु के निष्कासन और सूखापन हटा कर चिकनाहट लाने का काम तेल का है . जिस तेल में गंध और चिकनापन ना हो , मतलब इतना रिफाइंड कर दिया की उसमे तेलपन ही ना हो ; ये काम नहीं कर सकता . घानी का तेल जो सिर्फ छाना हुआ , मतलब फिल्टर्ड हो ये काम कर सकता है . देशी गाय का घी भी ये काम सबसे अच्छा कर सकता है . इसलिए दिल का ख़याल रखना हो तो सफोला के चक्कर में मत पड़ना .
जब यही हवा संधियों मतलब जोईंट्स में घुस जाती है तो वहां का द्रव सुखा देती है और अर्थराइटिस का जन्म होता है . रोज़ रात को गर्म दूध में देशी गाय का घी डाल कर पीया जाए तो ये संधियों में चिकनाहट वापस लाता है और धीरे धीरे संधियाँ स्वस्थ हो जाती है
क्या कारण है की एन्जीओप्लासटी करने के बाद भी खून की नलियाँ फिर से बंद हो जाती है .ओपरेशन करवाने के बावजूद मरीज़ की मृत्यु हो जाती है ? अगर शरीर में वात है अर्थात हवा ज़्यादा घुस गयी तो हवा सुखाने का काम करती है . खून की नलियों में भी यही हवा घुस कर सूखापन लाती है . चिकनाहट कम हो जाने से नलियों की दीवारों पर कुछ ना कुछ चिपकने लगता है .
वायु के निष्कासन और सूखापन हटा कर चिकनाहट लाने का काम तेल का है . जिस तेल में गंध और चिकनापन ना हो , मतलब इतना रिफाइंड कर दिया की उसमे तेलपन ही ना हो ; ये काम नहीं कर सकता . घानी का तेल जो सिर्फ छाना हुआ , मतलब फिल्टर्ड हो ये काम कर सकता है . देशी गाय का घी भी ये काम सबसे अच्छा कर सकता है . इसलिए दिल का ख़याल रखना हो तो सफोला के चक्कर में मत पड़ना .
जब यही हवा संधियों मतलब जोईंट्स में घुस जाती है तो वहां का द्रव सुखा देती है और अर्थराइटिस का जन्म होता है . रोज़ रात को गर्म दूध में देशी गाय का घी डाल कर पीया जाए तो ये संधियों में चिकनाहट वापस लाता है और धीरे धीरे संधियाँ स्वस्थ हो जाती है
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